सुशील स्तोक संग्रह | Susheel Stok Sangrah

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Susheel Stok Sangrah by शान्ति देवी - Shanti Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२. प्रत्येक वनस्पतिकाय एक अन्तर्मुहूर्त मे जघन्य एक भव करे, उत्कृष्ट सोलह हजार (१६०००) भव करे। ३ साधारण वनस्पतिकाय एक अन्तर्मुहूर्त मे जघन्य एक भव करे, उत्कृष्ट बत्तीमस हजार (३२०००) भव करे। ९. आयुष्यद्वार :- १ प्रत्येक वनस्पतिकाय का आयुष्य जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट दस हजार वर्ष का है। २. साधारण वनस्पतिकाय का आयुष्य जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है। १०, वर्णद्वार :- वनस्पतिकाय का वर्ण काला है। जो जीव इन वनस्पतिकाय जीवो की दया पालेगे वे इसभव मे, परभव मे परमसाता पाते हुए अन्त मे मोक्ष के अनंत सुख प्राप्त करेगे। पृथ्वीकाय, अपूकाय, तेऊकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय इन पांचो को स्थावरकाय कहते है क्योकि ये जीव अपनी इच्छा से चल-फिर नही सकते है। ह १. नामद्वार - जंगम काय। २. गोत्रद्वार - त्रसकाय। ३. भेदद्वार - त्रसकाय के चार भेद है। १ बेइन्द्रिय २ तेइन्द्रिय ३. चउरिन्द्रिय ४ पंचेन्द्रिय जो जीव अपनी इच्छा से चलते-फिरते है, उन्हे त्रसकाय कहते है। बेइन्द्रिय - जिन जीवो को शरीर और जीभ ये दो इन्द्रिया होवे उन्हे बेइन्द्रिय कहते है। जैसे .. शख २. सीप ३ कृमि ४ कोडी ५. लट ६ लार ७. अलसिया ८. न्हारू ९ जलोक १० पोरे (फुहारे) इत्यादि बहुत प्रकार के बेइन्द्रिय जीव है। (२०)




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