यजुर्वेद संहिता भाषा - भाष्य भाग - 1 | Yajurved Sanhita Bhasha-bhashya Bhag - 1

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Yajurved Sanhita Bhasha-bhashya Bhag - 1  by जयदेवी शर्मा - Jayadevi Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ») पत्नो स्तोम आत्मा छुन्दांएं/लि अज्ञानि यजूँए/वि नाम | सामके तनूबामदेव्य यशज्ञायज्ञिय पुच्छे ्रिष्यया: शफाः। खुपर्शोखि शरूत्मान दिये गहछ स्व) पत । तू सुपर्ण गरुत्मान्‌ ह। तेरा शिर त्िवृत्‌ स्तोम हैं । आंख गायज्न सास है| बृहत्‌ और रथनन्‍्तर दोनों पक्त हें | स्तोम आत्मा है। छुन्द (अथवे- चेद ) अंग हैं, यजुर्गण नाम हैं | बामदेब्य क्वाम तनु है। यज्ञायशिय साम उछ हैं ।घेष्णयय श्रा्मए शफ है | इसमें 'सुपर्ण गरुत्मान! में ही चारों वेदों का वर्णन है। कर्मकाणएड की इष्टि से इसी मन्त्र से श्येनाकार वेदी में होने वाले यज्ञ का वर्णन भी स्पष्ट हो जाता है | इस 'सुप्पंण” रूए परमेश्वर का चर्शन वेद स्वये करता है--- सुपर्ण विप्रा: कवयो वचोमिरेक खन्‍ते बहुचा कल्पयन्ति | कू० १० | ७। ४। ४ ॥। विद्वान्‌ पुरुष स्तुतियों द्वारा एक सुपण की भी बहुत धकार की कहपना कर लेते हैं । इस 'सुपर्ण” नाम यज्ञ का कितना विस्तार है इस विपय में ऋणग-वेद का मन्त्र है। परजिशश्वतरः कल्पयन्तश्छन्दाएशसि य द्धत आद्वादशम । यज्ने विभाय कवयां मनीष ऋकसामाण्यां प रद वत्तयन्ति ॥६। ऋ० १० ।११४। ६ ॥ उपांशु ओर अन्तयोम, इन्द्रवायव आदि ढद्िदेवत्य तीन अह, शुक्रामन्धियों के दो अह, झाग्रयथण, उकथ, और ध्व ये तीन, १२ ऋतु ऐन्द्राशन, ओर साविन्न दो, वश्वदेव दो, मारुत्वतीय तीन, माहेन्द्र पुक, आदित्य श्रोर सावित्र दो, बेशदेव, पार्त्न-वत ओर हारिग्रोजन, ये तीन, इस प्रकार ये ३६ अह या यज्ञांग ओर इनके साथ, अत्यपभिष्टोम में अंशु अदाभ्य, दाधिम्रह ओर पोंडशी ये चार मिलकर कुल ४० ग्रह दा यज्ञांगों




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