श्रीमद् वाल्मीकि रामायण [उत्तरकाण्डः] | Shrimad Valmiki Ramayan [Uttarkanda]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
412
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अड्सठवाँ सगे ६८४--६८६
शत्र॒ न्न ओर लबणासुर का आमना सामना और
परस्पर वीरोचित कथोपकथन ।
उनहत्तरवों सगे 8८६---६६ ८
लचणासुर और शज्नन्न .का युद्ध। लवणासुर का
शत्र न्न के हाथ से वध |
सत्तरवों सभे ६६८---७०१२
लवणासुर का वध करने के लिए देवताओं का
शत्र न्न जी की प्रशंशा करना और उनका माँगा हुआ
उनको बरप्रदान | वर के अनुसार मथुरापुरी का बसाया
जाना। ५
इकहत रवाँ सगे ७०२---७०८
मथुरापुरी में घारदह वर्ष रह चुकने के उपरान्त
शत्र ध्त की श्रीअयोध्यायात्रा । सागे में वाल्मीकि आश्रम
सें उत्तका टिकना | महर्षि के साथ श्र न्नका संवाद ।
, ्वकुश द्वारा श्रीरामायण का मधुर गान। उसे सुन
शत्र प्न के अनुचरों का विस्मित होना |
बहत्तरवों से ७०८---७१ ३
वाल्मीकि आश्रम से शन्रप्न जी का प्रस्थान और
श्रीअयोध्या में पहुँचना। श्रीरामचन्द्र जी के दर्शन
ओर उनके साथ शत्र न्न जी का वातोलाप | सात दिवस
श्रीअयोध्या में रह, शत्र प्न जी का पुनः मधुरापुरीगमन ।
तिहत्त रवाँ सगे ७१३---७१७
श्रीरामचन्द्र जी के राजभवन के द्वार पर अपने
मृतक पुत्र को लेकर एक “ब्राक्षण का आगमन और पुत्र
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