श्रीमद् वाल्मीकि रामायण [किष्किन्धाकाण्ड ५] | Shrimad Valmiki Ramayan [Kishkindhakanda 5]

Shrimad Valmiki Ramayan [Kishkindhakanda 5] by महर्षि वाल्मीकि - Maharshi Valmiki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शी । चौथा सगे ४६-४४ लक्ष्मण का इनुवाव जी को अपना समस्त वृत्तान्‍्त घुरादा तथा यह भा कद्दता कि, ऋबन्य ने कह्म है कि, सीता के हरने वाल्ले का सुप्राव जानते हैं। अव.ठुम उप्तके पाप्त ज्ञाओ | तदनस्वर हछुमान जा का दोनों भाइयों को सुभीवके समीप के जाना। पॉँचवा सर्ग १४-६१ इनुमान जा का सुप्रोव को श्रोएम बन्द्र जी का समस्त इचान्त सुबागा । सुप्राव और श्राम बन्द्र जा का, श्रप्मि को सात्ची कर, मैत्रा दवा और श्ाराम चन्द्र जा का सुप्रीव को टाढइस बैंघाना। बठवों सगे ६२-६७ सुप्रीव छा श्ररामचन्द्र जी को रावग द्वारा सोता के दरे जाते का शृत्तान्त सुनाना और सीता द्वारा ऊपर से ढाले हुए भाभूषणों द्वारा अपने कथन का समर्थन करना। सीता के आभूषण को देस श्रोशामचन्द्र जो का दुःखी दाना 1 सातवाँ सर्ग ६८-७३ आपस में एक दूसरे को सद्दायता करने के लिए औ- रामचन्द्र और सुप्रोष का वचतवद्ध द्वोाना और एक दूमरे के अपने अपने सुख दु ख़ की कया सुनाना। आठवीं सगे ७४-८३ ओयामचन्द्र लो क यातों से सन्तुष्ट दो सुप्ोव का श्रोराम- चन्द्र जी से प्रेमालाप करना, फिर आँखों में आँसू मर दालि द्वारा अपने निकाले जाने का बृत्तान्त सुना के




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