श्रीमद् वाल्मीकि रामायण [उत्तरकाण्डः] | Shrimad Valmiki Ramayan [Uttarkanda]

Shrimad Valmiki Ramayan [Uttarkanda] by महर्षि वाल्मीकि - Maharshi Valmiki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( 9) अड्सठवाँ सगे ६८४--६८६ शत्र॒ न्न ओर लबणासुर का आमना सामना और परस्पर वीरोचित कथोपकथन । उनहत्तरवों सगे 8८६---६६ ८ लचणासुर और शज्नन्न .का युद्ध। लवणासुर का शत्र न्न के हाथ से वध | सत्तरवों सभे ६६८---७०१२ लवणासुर का वध करने के लिए देवताओं का शत्र न्न जी की प्रशंशा करना और उनका माँगा हुआ उनको बरप्रदान | वर के अनुसार मथुरापुरी का बसाया जाना। ५ इकहत रवाँ सगे ७०२---७०८ मथुरापुरी में घारदह वर्ष रह चुकने के उपरान्त शत्र ध्त की श्रीअयोध्यायात्रा । सागे में वाल्मीकि आश्रम सें उत्तका टिकना | महर्षि के साथ श्र न्नका संवाद । , ्वकुश द्वारा श्रीरामायण का मधुर गान। उसे सुन शत्र प्न के अनुचरों का विस्मित होना | बहत्तरवों से ७०८---७१ ३ वाल्मीकि आश्रम से शन्रप्न जी का प्रस्थान और श्रीअयोध्या में पहुँचना। श्रीरामचन्द्र जी के दर्शन ओर उनके साथ शत्र न्न जी का वातोलाप | सात दिवस श्रीअयोध्या में रह, शत्र प्न जी का पुनः मधुरापुरीगमन । तिहत्त रवाँ सगे ७१३---७१७ श्रीरामचन्द्र जी के राजभवन के द्वार पर अपने मृतक पुत्र को लेकर एक “ब्राक्षण का आगमन और पुत्र




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