मणोरमाकहा | Manoramakaha

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Manoramakaha by रूपेन्द्रकुमार पगारिया - Rupendrakumar Pagariya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिरि-वद्धमाणसूरि-विरइया मणोरमा-कहा (१. सम्मत्त-बीय-लंभो' णाम पढसो अवसरो) ' पीम-भव-भसण-सभत-भव्वसत्ताणताग़ दुल्ललियो। सरय-समुग्गय-ससहर-जस-बवलियतिहुयणाभोगो 11 १॥। नमिरामर-मोलि-किरीड:क्ोडि-सघट्ट-लट्ट-पय-कमलो । प्रमप्पा पठमजिणो, परमंपय-पइट्टिओ जयइ 11२।। अज्ज वि. जस्स विरायइ, सुपसिद्ध पवथण गृणसमिद्ध । सस्तारजलहि-पडियाण जाणवत्त व भवियाण ॥।३।॥। सो सगमथ-महासुरूम्‌ सुमू र्थि-गरूथ-दप्प-माहप्पो । वीरो मयण-महाभड-मय-महणो, दलउ दुरियाइ ॥४॥ अजिथाइणों ,जिणिदे, जयपयंडे पासनाह-पज्जते । , सयल-सुरासुरतमिए, नमामि परमाए भत्तीएं ॥५॥। निटुविय-अट्रुकम्मे, जाइ-जरा-मरण-बवण-विमुक्के। तेलोक्क-मत्थयत्ये, पणमह सिद्धे सुह-समिद्धे ॥६।। सय-र्यण-साथेराण, खीरासव-पमृह-लद्धिजत्ताण -, पचविहायारघराण, पणमिमों गौयमाईण 1।७।। उज्ञिय ससार-पहें, सुत्त-पयाणेण! तोसिंय-विणेए। आयरिय-ठाण-जोग्गे, वर्दड5ह पवर-उज्झाए ।।८।। विविह-तव-सोसियगे, निस्सगे निम्ममे निरारभे। सिद्धि-सुह-साहणरए, साहू सिरसा नमसामि ॥।९।॥। जे मह-महग्घ-नाणाइ-रयण-तियगस्स का रण गुरवो.1 ताण छि-सझ (प्रि सया, पाए पय्रो पणिवयामि ॥/ ०।। देव़ायुर-नर-किण्णरपरितुट्दुक्किट्टि-लह-सवलिया । सव्वसभा-साणुगया, जिणवाणी वो सुह दिसउ ॥1११॥। कर-धरिय-धवल-कमला, सा रय-ससि-सख-कुद-समवण्णा | सिय-वसण-भूसणवरा, सरस्सई जयइ जथपथयडा ।। नदतु महाकइणो, सुललिय-पय-वण्ण-नास-सोहिल्ला। जाण पवधा पवरा हरति हियय छ्ल्लाण-।।१३॥। सरिमों सुषणाण सथा, गुणगहणपराण दोस-विमुहाण । जाण मुह-महोयहिणो, ववण अमय व॑ पज्ञ रह 11 १४॥। छदालका र-विवज्जिय पि, जइ विरहिय वि विरस पि | जे नियमइ विह॒वेण, कुणसिं कव्व गृणग्घविय ।1१५॥। अह भणलश्लि अत्यि अण्णों वि, दुज्जणों दोस-गहण-तल्लिच्छो ) सोडण णिज्जउ जेणेह, न कव्व-दोसे पयासेइ 1१६। गथ-नेंहो मुह-कडुओं, कसिण-गुणो भेय-का रओ घणिय । अमिएण वि सिंचतों, खली खलो चेव कि तेण ?11१७॥॥ पिसुण-सुंणयाण दोण्ह वि, दी सइ लोयम्मि अतर गरुय। चिरप्शिचिएसु न भसइ, सुणओ पिसुणो पुणो भसइ 1१८। दोजीहो कुडिलगई, वहि-लण्हो अतरम्मि विस-भरिओ । परछिद्वाणुप्पेही, पिसुणजणो सप्प-सारिच्छो 11१९1॥। सिक्खम्‌ हो लोहिल्लो, पर-भम्म-विघट्टणो गुण-विमुक्को । नाराओ विव पिसुणो, सम्मुहमित्तो वि भयकारी 1२०1 उल्लावनेण न कस्स होइ पासत्थिएण थद्धेण | सकामसाण-पायव-लवियचोरेण व खलेण ॥1२१।। पच्छन्न-पडतर-सठिएण, खणदिद्वनद्वविलएण । पिसुणंण मकुणेण व, को आढत्तों सुह सुयइ ? 11२२।॥। कह वि कुणइ कब्ब, कई किलेसेण गुरुनिरोहेण। उस्सिखल-खल-लोओ, दूसइ त वयणमेत्तेण 11२३॥।




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