छन्द रत्नावली | Chhand Ratnavali

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Chhand Ratnavali by राजाराम शास्त्री - Rajaram Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सहत्यरिसापा 3 ' देखा पहुँ-- जशैट सदा उपत्तति की गशे। मेता घन समाज में रहो ॥ तो इस भे घौदोला पी गति भा ज्ञाती दै।गति फो कान पदचानते हैं और यद पदचाए अम्पासपद होती दै । (म्प) यति विराम अथधरा ददशंव को फहते हैं। पाद के शंस्त में तो सभी छन्दों फे यति दोती दे, पर पड़े छन्‍्दों में एफ ही पाद में दो या शीत यतिया शोती हें। पति के अनुसार विराम वरफे बोलो से छ द मधिफ छुद्ायने बन जाते हैं । देखो शिरारिणी भर मस्दाप्रान्ता फे उदादरण (पछ ७) | चरण १३--(क। एन्‍्द्‌ भी एफ पूरी चप्ट फो धरण पाए या दद्‌ पहने हैं। धरण प्राय' चार होते दे | जैसे-- (१) ७ माध्रार्भो पा सुगति छम्द । शिव शिव पद्दो, यदि सुछ घहों। जो छुमाते हैँ मो झुगठि हैं ॥ . 'आनुकदि! (४) +६ माषात्रों का सीतिया छस्‍द। अम के मग में शमी से कमी डरा महीं पेव बार जएना दुमाएग मं बल्म घदना गर्री दुट्ट आपों में सपानश शझावत्ा भप्गा महा | इोपरदर्धक ऐश सिरे में कमी करता गहीं ४ फाधुराण दादुए $




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