सिलसिला | Silasila
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सिलसिला : चन्द्रप्रभ [ २१
बेटा चोर नहीं हो सकता । वह चोर नहीं हो सकता | पर,
मेरी आत्मा इसे स्वीकारेगी ? क्या मैं बता दूँ अपने माता-
पिता से कि तुम्हारे आादरश-पुत्र का क््या/कैसा यथार्थ है ?
क्या वे इसे स्वीकार करेंगे ? सच्चाई कहने के बावजूद क्या
मेरी मम्मी यह न कहेगी, नहीं मेरा बेटा चोर नहीं है, वह
चोर नहीं हो सकता ।
भु भलाते हाथों से उसने बल्ब जलाया। अ्भिशप्त
कमरे में रोशवी विखर गई । बादल बाहर गरज-बरस रहे थे ।
वह भ्रव भी खीजा हुआ था और स्वयं से पागल की तरह कह
रहा था, 'नहीं, मैं और घुटूगा। यह तनाव, इन्द्र, चोट,
यन्त्रणा मैं सहँगा इसमें जलूगा। यही मेरे भ्रपराध का मुझे
दण्ड है और यही मेरे लिए प्रायश्चित भी ।'
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