मेरी प्रिय कहानियाँ | Meri Priya Kahaniyaan

Meri Priya Kahaniyaan by इलाचन्द्र जोशी - Elachandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दुष्कर्मी १९ ध्यान नहीं था । मैं केवल उसकी झांखों को देखकर चकित था । उज्ज्वल विस्मित झरांखों की वैसी मार्मिक तीव्रता मैंने श्रपने जीवन में अभी तक अन्यत्र कहीं नहीं देखी है । मैं मोहाविष्ट होकर उन्माद ग्ररू-सा उसकी ओर देखता ही रह गया । देखते-देखते मैं ऐसा महसुस करने लगा कि मेरे हृदय के साभने थगों से कराल मत्य का जो निशिड़ काला पर्दा पड़ा हुमा था उसे जैसे स्सिीने झपने जादू के स्पद्यं से श्रार-पार चीरकर छिन्न-भिनन्‍त कर दिया हो । दारत- काल की पारदर्वी नीलिसा मेरे रोम-रोम में झतंत्र जीवन मी स्तिग्व-चेतना संचारित करने लगी । मेरी श्रन्तरात्मा दे कण-कण प्रभातकालीन तहिन की उज्ज्वलता से भीग गया । मैं पहल ही कह चूका हूं कि दह इवली-एपलीं पी पर उसकी श्रांखों ८ श्रलौकिक माया के कारण उसके दरीर की ओर मेरा ध्यान ही नहीं जादा था ऐसा जान पड़ता था जैसे उसमें दारीरत्व का नाम नहीं है--जेंसे बह ईदवर में तरंगित होनेवाली एक अनीत्द्रिय छाया हो। ठाड़की ने हारमोनियम बजाते हुए ऐसे सधे हुए स्वर में पीलू गाना शुरू किया कि सारी सभा में स्तब्धता छा गई । उसके लचीने गले में एसा दरद॑ था कि मालम होता था जैसे सारा वायमंडल निखिल विरह की करुण वेदना से मन्द-मघुर रो रहा है। सारी जनता को विह्लल-विश्वान्त करते उसने और भी दो-एक गाने गाए । उस रात को जब मैं घर पहुंचा तब एलग पर लेटकर बहुत देर तक नवीन भ्रनुभूति से सिसक-सिसककर रोता रहा । रोने में इतना श्रानन्द है यह बात मुभऋे पहली बार मालूम हुई। मृत्यु की अछेद्य माया भेद करके उस दिन मैं जीवन के प्रांगण में बहुत दिनों बाद पांव रखने में सफल होने पर पूर्ण प्रसन्न था । दुसरे दिन सुबह को मैं फिर किसी बहाने अपने मित्र के यहां गया 1 पिछले दिन भरी सभा में उस लड़की को देखा था श्राज व्यक्तिगत रूप से उसे देखने का सौभाग्य प्राप्त हुमा । अपने मित्र से जिनका नाम रासेदवर प्रसाद था मैंने पूछा कि वह लड़की कौन है भ्रौर उनसे किस प्रकार सम्बन्धित है । रामेदवर बाबू की बात से मालूम हुभ्रा कि वह उनके मामा की लड़की बनारस के किसी हाई स्कूल में पढ़ती है झौर अपनी भाभी ( रामेइवर वाबु की पत्नी) के विशेष भ्रनुग्रह से छुट्टियों में उनके पास झ्ाई हुई है । मैंने फिर एक बार लड़की की ओर देखकर कहा-- गाती तो बहुत अच्छा है । झासावरी सुनाने को कहिए मुझे सब रागिनियों में यही सबसे ज़्यादा पसन्द है । रामेदवर बादू ने लड़की को संवोधित करते हुए कहा-- गा दो सरला गौरी बाव श्रचुरोध करने हैं । बिना किसी झ्रापत्ति के सरला टिमटिमाते हुए तारे की तरह विस्मित




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