बिन्दु | Bindu

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Bindu by चन्दर भटनागर - Chandar Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिवा मर कोट स पैंस लेने की हिम्मत कर भो कौन सकता है ? समझी ? में वह सब क्या और केस कह रहा था? ' इस आततिम वाक्य को पिता ने प्रत्येक शब्द पर जोर दे दे कर कहा ॥ मा का सिर थुक गया और उनकी जाया म आसू छतछला आए। बहते कुछ न बना । वहा से उठकर भीतर कमरे मे चली गदइद। चारपाई पर धम्म से बैठ यई । विभार प्रवाहित होने लगे-- हाथ भगवान # इतना नंक सड॑द् था। इसको हो क्‍या गया है? बचपन में आचाकारी और पढाई मे हाशियार था । वह सब क्या हो रहा है ? अब वह बहा होगा ? किस दोस्त के यहा गया होगा ? बया कर रहा होगा *” रह रहकर मा का मन उद्वेलित हो उठता और रवत प्रवाह को अधिक कर देवा । मा अपने बिस्तर पर बंठी, ठुड्डी अपन घुटनों पर रखें दोना बाहा से ठाग्रो बी जकड़े जा रही थी। न तो पेट जाये को बाहर फेंक्ते बनता था और न इन बुरी आदतों में पड़े मनोज बो घर मे रखते बनता था। जब व्य।क्त का वश नही चलता तो वह एक घायल पक्षी की भाति छटपदाता है । जिस प्रकार वह पक्षी अपने पल्लो को इधर-उधर पटकता है और बराहता है, ठीफ इसी दशा मे मनोज की मा ने अपनी बाहा को बिस्तर पर इधर उधर पटका और सहार के लिए चारो ओर ताकन लगी | पर निराशा-निराशा । शूय शूय। कमरे के भीतर, आसपास कोई नहीं था । मा न सन हों सत बाह फला दी और प्राथना की---/भगवात्‌ | कृपा करो । मेरे मनोज को जहा कही भी हो, जिस किसी भी अवस्था में हा, उसे घर की ओर आन की प्रेरणा दो। * अरे ' कहा हा ? सुनती हो ' सुनती हो ! कुछ खाना बाना बनाया या नही । दोपहर वे डेढ बज रहे है । राधिका बिटिया भी सहेली वे धर से आ गयी है। जाभो, खाना खाए ।” पत्ति ने पत्ती को काफी समय से देया नही था, इसी कारण ऊचे स्वर में आवाज दैते हुए बुलाया ! मा, जैसे अगाध समुद्र के तले से ऊपर झटके से आयी । तव धका-- चूर चूर । मन थका--चूर चूर। चोक्‍कर बिस्तर से उठी। “बरे! साढे दस बजे से मो हो बठी रह गई हू । उद्ध1” अपने आपस बाली] + विडस्बना. 27




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