सम्मेलन कविताज्जलि | Samalan Kavitanjali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
28
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)_ सम्मेलन-कविताअलि । शेड
“मयंक के प्रति?
नील प्याम के सुन्दर दीपक ! शीतलता के भव्य भवन ।
उस निर्जन बन में अनन्त की, नीरवता में खिले सुमन ।
आकुलता के सोम्य कलेवर ! मधित-द्वीर--सागर--नवर्नीत ।
निशा सुन्दरी के भाव॒क पति ! मेरे मानस के संगीत !
सुर सरिता तरड़ माला के, आकुल हृत्कम्पित नाथजिक ।
घीरे धीरे आओआं ! आओ !! आओ !!! सुस्पित बदन रखिक [.
विश्ववेदना के दर्शान-पट 1 मेरे नयनां के झूले 1
आओ | आओ !! निशानाथ ! चिर दुखित कुमु दिनी भीफूले ॥
--श्रो द्वारिका प्रसाद मोर्य्य ।
“शुति दामिनी की?”
पहिले मन मान के बेठी भट्ट सुधि आई न सावन यामिनी की ।
मनुहार न एक हु मान्येा. अली, मति ऐसी भई गज़ गामिती की ।
'सुप्रसिद्ध” इते में अ ध्यारी घटा, घिरिओरे क थे गतिका/मरनीकी |
लपटानी सकानी हिये पति के, डरीयें छखिके थ ति दामिनीकी ।
--प्री प्रसिद्ध नायायण गोड ।
| जलेगे
जलेंगे !
दे नंद नन्दन ! आप बिना दरणागत के दुख कौन दलेंगे।
क्या करुणा कर भी कहलाकर याँ छलिया बन आप छल्गे॥
हाय !-न साथ चले यादे नाथ ! निरन्तर हाथ अनाथ मछेगे।
आह नहीं, यह आग बुरी ब्रज्ज के बन बाग तड़ाग जलेंगे॥
“शी रामानुजदास बी० प्ु० |
ही
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