स्त्री और पुरुष | Stree Or Purush
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.99 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ख्री श्र पुरुष
और असदमत कोई हो भी क्यो ? उसकी बात तो यह दै
कि इस बात को सभी सानते हैं कि मनुष्य-जाति नैतिक शिथि-
लता से पवित्रता की ओर धीरे धीरे प्रगति करती जा रही है
और उपयुक्त विचार इसके अनुकूल है । दूसरे यदद समाज और
व्यक्ति दोनो के नीति-विवेक के अज्जुकूल भी है । दोनो बैपयिकता
की निन््दा और संयम की तारीफ करते हैं । फिर ये बाइबल की
शिक्षा के भी अनुकूल है, जो हमारे नेतिक विचारों की चनियाद
में हैं और जिसकी दम डीग मारते है। पर बाद मे मेरा यह
खुयाल ऱालत साबित हुआ 1
पर यह तो सत्य है कि श्रत्यक्ष रूप से इन विचारों की
सत्यता में कोई शक नहीं करता कि विवाद के पहले या बाद में
विपयोपभोग अनावश्यक है--कन्निम उपायों से संतति का निरोघ
नहीं करना चाहिए और ख्री-पुरुपो को अन्य कार्यों की अपेक्षा
विपयोपभोग को अधिक मदत्वपूण॑ नहीं समभना चाहिए 1
अथवा एक शब्द मे कईें, तो विषयोपभोग की अपेक्षा सयम--
श्रह्मचय--कद्दी अधिक श्रेप्ठ है । पर लोग पूछते है, यदि न्रह्मचय
विपयोपभोग की अपेक्षा श्रेष्ठ है तो यहद सपष्ट है कि मनुष्य को
श्रेष्ठ भागे दी का अवलम्बन करना चाहिए । पर यदि बे ऐसा
करें तो मनुष्य जाति न नर हो जायगी ?”
किन्तु ऐ्रथ्वीतल से मजुष्य-जाति के मिट जाने का डर
कोई नवीन बात नदी है । धार्मिक लोग इस पर वड़ी श्रद्धा
रखते हैं और बेज्ञानिको के लिए सूर्य के ठंढ़े दोने के वाद यह
एक अनिवाय वात है। पर हम इस विषय से यद्दों कुछ न कहेंगे ।
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