शिवगीता | Shivgeeta

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Shivgeeta by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषधिकासमेंत।... (२१) पराजाह! ऐसे अमिमानसे कहनेवालेकों बंशसहित संहार करते जो सम ठोझका कर्ता तथा अक्षय ऐश्वयेयान पुरुषमी ॥ १४ ॥ शिवशिवोहहमस्मीति वादिन ये व कश्नन ॥ आत्मना सह तादात्यभागिन कुरते पृशम२५ अभिभानेरहिततों जो शिव: शिवोह! इस प्रकारते कथन करता है उसकी शिव आमलरुपके तादात्यमागी अधात / शिल्पी कर देते है | १९ || धमोयकाममोश्षाण पार यस्याथ येन वे । पुनयस्ततावक्ष्यामि बते पशुपतामिपम ॥रे | हे ऋषियों | जिंत म्तके करनेते प्रागीरे धमे, जबे, काम, मोक्ष यह चारों पदाय हस्तगत होते हैं में वह पाशुपत त्त तुम त वन करता ॥ २६ ॥ कृत्व। तु विरां दीक्षां मतिरद्राक्षपारिणः ॥ जपन्तो पेदसारास्य शिवनामसह्सकम॥ ३७॥ विरजानामक दीक्षाकों करके 'विभति और रद्राक्षको धारणकर बेदसारंनामक शिवंसहलनामको जप करते हुए ॥ १७ | सत्यज्य तैन मर्त्य॑त्व शी तबुमवाप्स्यथ ॥| ततः प्रसत्नो भगवारछकरों लोकशंकरः ॥है८।




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