हैमनाममालाशीलोञ्छः | Haimanamamalasiloncha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ दीका ग्रन्थं-- १, शेपसंग्रहनाममाला दीपिका कलिकालसवेज्ञ श्रीहेमचन्द्रसूरिषणीत शेपसंग्रह नाममाठा पर श्रीवल्छभ ने ' श्रेवल्लमीा नामक दीपिका की रचना वि. से, १६०४ भाद्रपद कृष्ण ८ को, महाराजा रायसिंहजी के राज्यकाल में वीकानेर में की है। संवतोल्लेखवाली रचनाओं में श्रीवललभ की यह सर्वप्रथम रचना है । ४ प्रत्येक शब्द की व्युत्यत्ति, लिठ्ननिवेचन और शब्दों के प्रमोग सिद्धदेमशब्दानुशासन, उणादिसून्न, धानुपारायण, विश्वग्रकाश, ञझाश्रत, वेजयन्तो, माला, इन्दु, वनमाछा, अमर, वाचस्पति, भविष्योत्तरपुराण, विष्णुपुराण, मार्कण्डेयपुराण, मत्स्यपुराण, सन्नीतरत्नावली आदि ४६ अन्धों के उद्धरण देते हुये दीपिकाकार ने सफलता के साथ स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है | दीपिका में २० शब्दों के राजस्थानी रूप भी प्राप्त हैं | ग्रन्थपरिमाण १९०० इलोक है । दीपिका प्रकाशन योग्य है | इसकी प्रतियाँ विनयसागर सैग्रह कोडा क्रमाइु ७७७ ओर महिमाभक्तिज्ञानभण्डार चीकानेर, ग्न्थाइु १६३५ में प्राप्त है। जिन/त्नकोष के अनुसार इसकी एक प्रति विमलगच्छ उपाश्रय, अहमदाबाद में डाव्रडा ने, ४६ ग्न्थाड ३५ पर प्राप्त है | २, हैमनाममालाशिलोठ्छदी पिका प्रस्तुत दीपिका का परिचय आगे द्र॒ष्टव्य है । ३. हैमलिज्ञाजुशासनदुर्गपदप्रवोध टीका श्रीदेमचन्द्रचार्यप्रणीत लिझज्ञानुशासन के स्वोपज्ञ विवरण पर ६दुर्गपदप्रबोध! नामक टीका की रचना श्रीवल्छभने आचाये जिनचन्द्रसूरि एवं उनके पह्चधर श्रीजिनसिंहसूरिं के धमराज्य में विचरण करते हुये बि. सं. १६६१ कात्तिक शुक्ला सप्तमी को जोधपुर में उृपति सूरसिंह के विजयराज्य में ९० से अधिक ग्रन्थों के उद्धरण देते हुये २००० ग्रन्थ परिमाण की । वृत्ति की रचना मूल लिड्रानुशासन पर नहीं की गई है ! इसमें 'विद्यते या शुभा वृत्ति स्तस्य दुर्गाथवोधद:? [प्र. प. १०] से स्पष्ट है कि आचाये हैमचन्द्र का ही जो छिड्भानु- शासन पर स्वोपज्ञ विवरण है, उसमें जिन जिन स्थानों में दौर्गम्य या काठिन्य है उन ही स्थलों पर इसमें विवेचन किया गया है | इसिलिये इस व्याख्या का नाम श्रीबल्लमने (ुरग पदप्रवोध! रखा है । । १- वर्ष शतानन्दमुखेजियेशपुत्राननाब्जप्रमिते [1६५४] वरिष्ठे । . । 9 अष्म्यहे भासि नभरयह्ृृष्णे श्रेष्ठे पुरे विक्रमनामधेये ॥२१। होषसंग्रहदीपिकाप्रशस्ति २ श्रीमद्योधपुरे द्क्ले सूरसिहमहीपतौ । | औऋ ८ भर भूमिषद्रमतुन्नीशसंख्ये १६६१ वर्ष सुखाधिके । मासि कार्त्तिकिके कान्‍्ते खुदिने सप्तमीदिीी ॥५-६॥ प्रशस्ति$




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