मकड़ी का जाला | Makadi Ka Jala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मिली । हम दोतो ते उन्हें साइठा कराया जोर बेकईर 'पंधारमेन्कके
निमन्त्रण के साथ उन्हें विदा किया । के सम + जाकर
दूसरे दिन जज महोदय निर्धारित समय से पूर्व ही पधार-गए ।. पत्नी.
ने उनके लिए बडा ही अच्छा स्वादिष्ट नाश्ता तैयार किया, जिसमें हलवा
ओर मेवे के लड्डू खास थे। जज साहब ने भारी-भरकम नाइता समाप्त
कर एक डकार ली और न्यायिक जाच की घोषणा की। सबसे पहले
उन्होंते अपनी न्यायिक जांच की प्रक्रिया से हम लोगों की अवगत कराया ।
उन्होने कहां, “सबसे पहले आप लोग अपना-अपना स्टेटमेट वीजिए । फिर
आप दोनो को एक-दूसरे को 'क्रास इग्जामिन! करने का मौका दिया
जाएगा ।” फिर अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए साक्ष्य के रूप में आप
अपने बच्चों, पड़ोसियों व मित्रो को पेश कर सकते हैं। इस काम के लिए
हमे दो सप्ताह का समय दिया गया। दूसरे दिन से जज साहब की जांच
प्रक्रिया शुरू हुई | हम दोनों मे अलग-अलग अपने बच्चों को पड़ोसियों को
लालच देकर, रिश्वत देकर अपने-अपने पक्ष में दलीलें देने के लिए तैयार
किया । पर मेरे साथ एक समस्या थी। जज साहब के पैने प्रश्यों के सामने
मैं घबडा जाता और कुछ का कुछ बील बैठता । मुझे लगा कि यह मेरे
हित मे मही है।
बहुत विचार करने के बाद मेरे दिमाग मे एक योजना आई। क्यों न
किसी वकील की सलाह ली जाएं। फिर सोचा कि घर का मामला है,
बाहर वाले को बुलाकर घर की बदतामी ही होगी | जज साहब की तो
दूसरी बात है 1 एक तो वे जज है, दूसरे वे अपने मित्र भी हैं। फिर एक-
दम विचार कीधा | मेरे छोटे भाई ने अभी-अभी वकालत शुरू की है।
खास चलती नही । उसे अपने घर बुला लें।
मैंने अपने छोटे भाई रमेश को यह कहकर बुला लिया कि बहुत दिन
से तू आया नहीं है। एकाघ सप्ताह यहां रह जाएगा। आज्ञाकारी भाई
मेरे कहने पर तत्काल आ गया । मैंने बातो ही बातों मे उससे सलाह ली ।
उसकी सलाह का यह लाभ हुआ कि अब मैं झूठ को इस तरह बोलने में
प्रवीण हो गया कि वह सच लगे और सच के सिवा कुछ न लगे। अब में
जज साहब के सामने बिल्कुल नहीं घवड़ाता। उनके प्रश्नों के उत्तर मैं
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