भारतीय व्यवहार कोश | Bhartiya Vyohar Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध्वनिविचार सुंचोधित आंतरराश्रय देवनागरी 'ध्वनिलेस्खन ६३ . घर. ण “के, पद स अजुक्रम चर्णन सघोष, दन्त्यौछ्य, अधस्वर । अघोष,-दंतमूलीय, संघर्षी । मधघोष, कठिन ताल्व्य, संघर्षी । उघोष, सूर्घन्य, संघर्षी |. सघोष, कण्ठ्य, संघर्ष सघोष, मूर्घन्य, पाध्चिक । सघोष, मूरघन्य, संघर्षी | संयुक्ताक्षर (क्‌+ घर) संयुक्ताक्षर [जून ज] . अनुस्वार । वर्ण के सिर पर बिंदी । 'ध्वनिविचार उदाहरण हिन्दी-वन दर फ़ा छा।डॉन-फाणण, 006. हिन्दी-सवेरा; फ़च्िडा-डोप, पिंड, हिन्दी-दान्ति; एफ छ्ाडाच-डॉ16.. संस्कत-पुरुष; 10७ 8050-5000%. फेवर संस्कृत में इंस का ठीक प्रकारसे वर्णित उच्चारण होता है। अन्य भाषाओं में प्रायः [श ] या [स ] बनता है। हिन्दी-दम; फा०8150-971680ं कक, ओड़िया-डोढा > मँख €फ्€; मराठी-डोढा >ौख «छू; तमिछ, ... मलयाठमू:मकठ < पुत्री व&०६७7 तमिदठ, मलयाठम-पठमू > फल कफ; पा ांडाण-पप्ण [छुन्‌ | यह बण केवंढ तमिछ और मल्याठम्‌ में आता है। [ष] को संघोष बनाने से उस का उच्चारण इस के समीप आएगा। गीतों में उर्दू शब्द नंज़र का उच्चारण इसी तरह होता है [ नज़छ ] 1 ७ संस्कत-क्षमी [क्घमा ]; हिन्दी-क्षमा [ बदमा ]। इस वर्ण का उन्च्वारण [ क्ख [क्ख्य ] [ख .] इत्यादि कई प्रकार से होता है। संस्कत-श्ाश्ञा। इस वर्ण का उच्चारण मिन्न भिन्न प्रकारसे होता है। हिन्दी-भाज्ञा [ आग्या ]; बाड्ला-आज्ञा [ भाग्गें ); मराठी-आशा [. आदून्या.3। हिन्दी-मंद [ मन्दू ] | अधघोष, कण्ठ्य, संघर्षी । विसर्ग । स्वर के. संस्कृत-क्रमद, मना, पाया; छा8॥5+-०8त पश्चात्‌ खडी दो बिन्दियाँ छगती हैं । प्ंद्रबिन्दु । नासिकोच्चारण निरद्दाक चिह्न । .. हलन्त-स्वर के लोप निदर्शकं चिह्न । _ हिन्दी आँख । जे हिन्दी-कान | कान्‌ |; जगत्‌ । उच्चारण की कुछ विशेषताएँ: मंनुष्यने अपनें मनोभाव को प्रदर्शित करने के लिए. अभिनय के साथ-साथ अपने मुखसे निंकलनेवाले ध्वनिसमुच्चय का भी उपयोग करना झुरू किया और इन ध्वनियों को अड्लित करने के लिए कुछ संकेत-चिह्न निर्माण किये जिनसे लिपि तैयार हुई। परम्परा के अनुसार मानव अपने भावों को अनुसरित छिंपि में लिखता गया, किन्तु बोलने में स्थलकालानुसार पशि्विर्तन हुए । इन परिवतेनों में जहाँ साधर्म्य' रहा वहीँ उन 'लोगोंने फिर अपने ध्वनिसंकेत प्रथक॑ बनाये, लिपि. प्थक बनायी और प्रथक- प्रथक मानव-समूह की प्रथक-प्रथक भाषाएं बन गयीं । इनं भाषाओं बोलियों का उन्म हुआ जो अपनी-अपनी भाषा के अंतर्गत ध्वनियों के द्वारा भावप्रद्शन का विशेष ढंग रखती हैं । दरएक बोली या भाषा की अपनी-अपनी विशेषता रहती है । यहाँ भारत की पौचच सौ से अधिक बोलियों के उंच्चारण की विशेषताओं का परिचय करा देना तो असंभव है। फिर भीं, अपनी 'प्रमुख सोलह भाषाओं के उच्चारण की कतिपय - विशेषताओं का अति स्थूल निर्देशन हम करेंगे। उच्चारण में तो हर बारह गॉवपर अंतर पड़ता है। इतना ही नहीं तो एक ही दाब्द भिन्न-भिन्न व्यक्तियोंद्वारा अलग- अलग ढंग से उच्चारित होता 'है । ऐसी अवस्था में भाषाओं के उच्चारण में होनेवाले सूबष्मातिसूक्ष्म परिवर्तन को अड्कितें करना यह न पाठकों के लिए. सुविधाजनक होगा न हमारे लिए | अतः हरएक भाषा की कुछ सर्वेसाधारण विशेषताएं: आगे दे रहे हैं। हिन्दी... पा एक से अधिक अक्षरों के शब्द के अंत में यदि अ स्वर आता है, 'तो उस का उच्चारण नहीं होता। अन्त्य व्यल्नवण हलन्त हो जाता है। जेसे नाक का उच्चारण [ नांक्‌ ] होता है और कान का [कान्‌]। इस नियम के लिए कतिपय अपवाद मी हैं । प्रायः संयुक्तवर्णान्त दाब्दों में अन्त्य अर का छोप नहीं होता, जैसे-गद्य । उ या अकारान्त व्य्न के पश्चात्‌ “हु” के आने से प्रायः उस .अ* का [ें ] बनता है और हद इलन्त हो जाता है । जैसे मद [ में ], दीदद [रद्द ] । कईबार ऐ. का उच्चारण मी [ में ] होता है जैसे मैं का [में , और बैल का [बेल ]। कभी-कभी ऐ की में बनकर अगले ध्वनि के पूव हलंकी सी *यर की ध्वनि सुनाई देती है। जैसे पैसा [ पेंप्सा ] । श का उच्चारण हिन्दी में ग्य होता है। जैसे आशा [ भांग्या ]; ज्ञान [ ग्यान्‌ ] | ल्‍ आज की खड़ी बोली में ५ विशेष ध्वनियाँ हैं, जो अरबी और फ़ारसी से ख़ायी हैं और अस्बी फारसी दाष्दों में ही पायी जाती हैं । के, ख, श, जूं, फ्रं। हिन्दी या उदूं में औ का उच्चारण भी और के दरसियान करना चाहिए, जैसे और [ आर ]। दब्द के स्तर पर इस के आो . के . समीप होने: के ,काशग दाब्दावली में हम ने उच्चारण में औ” ही रक्‍्खा है। वाक्यों में यंधावश्यक [आऑ!] दिंया गया है। ) हिन्दी की आम बोली में जहीँ प्रारंभ में स के साथ 'संयुक्ताक्षर “आता है, वहां उच्घ्वारण में उस संयुक्ताक्षर के पूव इ या अःकी' ध्वनि आती हैं।' जैसे 'स्री' को [इखी ] और स्पष्ट का [ अस्पष्ट ]।




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