अथ जैमनिसुत्रम् | Ath Jaimani Sutrani Jyotisi

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Ath Jaimani Sutrani Jyotisi by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषादीका, ३ स्थरमन्त्पंविना चरम्‌। युग्मं खेन विना युग्म॑ पश्य- गीत्यवमागम/ सोई दूसरे आचार्पनेती हिखा है-- +चरानागवाणेशराशीन्‌ ख़तो वे स्थिर: पट्ठ॒तीया- इराशीनू कमेण। स्वतः शैल्स वेदर्भ पट्चिसण्य ऋमा- है.स्पन्ावाः प्रपश्यन्ति पूर्णेम्‌!” चरराशि अपनेसे नाग फहियें अम ८ बाण कहिये पश्चम ५ ईश कहिये एकादश ११ वें राशिकों देखता है। और स्थिरराशि अपनेसे पष्ठ ६, व तोप, और अइ् कहिये नवम्र ५ को देखवा है और दिश्वभाव पशि अपनेसे शैल कहिये सप्तम ७, बेद कहिपे चतुर्थ और ड्रि कहिये दृशम १० राशिकों देखता है ! २॥ ३६ ॥ अब राशियोके द्वारा ग्रहोंकी दृष्टि ठिखते हैं।-- तन्निष्ठाश्व॒ तद्॒त्‌। ९1 अथ--पूर्वोक्त राशियों ( बनवा पु टी स्थित ग्रहभी पूर्वोक्त स्थानोंमें स्थिद गरहोंको देखवेहं” थीतू घर राशिमें स्थिव ग्रह अपनेसे ८५११ राशिपय स्थिव थ्रहकों देखते हैं ॥ और स्थिरराशिमें स्थित ग्रह अप- वैसे ६॥३॥९ राशिपर स्थित ग्रहको देखतेहँ | तथा दिस्व- भावराशिम स्थित यह अपनेसे ७1४।॥० राशिपर स्थिव प्रहको देखते हैं| इस विषयमें वृद्कारिकाका प्रमाण देते हैं- “चरस्थे स्थिरगः पश्येत्‌ स्थिरस्थं चरराशिंगः । उत्त- ( 4 बूक्षमगों निकटरथ बिना ग्रहम!---घरराशिमें एक्को ग्रह स्थिर राशिमें स्थित यहको देखदाह और स्थिर राशि-




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