अमरकोश: खण्ड - 1 | Amarakosha Kand-i

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Amarakosha Kand-i by पंडित हरिप्रसाद भागीरथी जी - Pandit Hariprasad Bhagirathi Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वर्ग: ५ ] प्रथमकॉण्ड | ( २० ) च्यठिद्वत्वमागुणात्‌ ॥ १० ॥ समा- | गोर अवछक्ष घवठ अजुन हरिण पाण्डर कर्षी तु निहारी सुरक्षिप्रांणवर्षण:॥ | पाण्डु यह सोलह नाम श्वेतके है ईपलाए्ड इछ्ठगन्धः सुगन्धिः स्पादामोदी मुख- | पूसर यह दो नाम धूसर थोड़े खेतके है३३ वासन; ॥ ११ 0 हुए्णे नीठासितश्पामकाउश्पामठ- मर्दन करनेंसे उठेभये ऐसे मनोहर गर्भम | भेचका+ ॥ पीतों गौरों हरिद्राभ* परिमल शब्द वर्ष है अर्थात्‌ परिमछ यह | पाठाशों हरितो हरितू ॥ १४ ॥ एक नाम मसलतेंसे उत्तन ये मनुष्योका | छोहितों रोहितों रक्तः शोणः कोक- मन हरनेवाल्े गन्धका हे जो अतिनिहारी | नंदच्छविः ॥ अव्यक्तरागस्वरुण* अरथादबहुतही दूर जानिवाला गन्ध है वह भा- | वेवरक्तसतु पादल' ॥ १७ ॥ मोद सत्तिक है इससे पर गुण शुक्रादिकपर्यन्त । छप्ण नीए असित श्याम कार श्यामछ विशेष्यलिगत्व हैं अर्थात्‌ इससे परें शुक्ृपर्यन्त | मेचक यह सात नाम काछे वर्णके है पीव शब्द व्रिट्ठिग्म होते है ॥ १० ॥ समाक- | गोर हरिद्राभ यह तीन नाम पीलेके है पा- पिन, निर्हारिन, यह दो नाम दूर जानेवाड़े | छाग हरित हरिठ यह तीस नाम हें वर्णके गधयुक्त व्ृब्पके है सरक्ि घ्राणवर्पण इष्टगन्ध | हैं ॥ १४ ॥ छोहित रोहित रक्त यह तीन * सुगन्धि यह चार नाम सुगययुक्तके है| नाम छाल्के है जो राल्कमल्कीसमान वर्ण आमोदिन, मुखवासन यह दो नाम मुखकों | है वह शोणसज्िक हे और णो अव्यक्त राग सुगन्वयुक्त करनेवाले वावूलादिकके है॥३ )॥ | अर्थाद्‌ योडासा लास्‍्वण है यह अरुण पूतिगन्धिसतु दुर्गन्धो विस स्पादाम- | रे हें जीर जो शवेतयुक्त डास्वर्ण ह १ह गरन्धि यत्‌ ॥ शुक्शुभशुचिश्वेतवि- | सत्ञिक है ॥ कै ॥ शद्श्येतपाण्डरा' ॥ १२॥ अवदातः | *पाव' स्पात्कपिशों धृश्नपूमटी छा- सितों गौरों वठक्षो धवलोप्जुनः ॥ | प्णटोहिते ॥ क्हार कवित् पिंड हरिण३ पएडुर* पाण्ड्रीपत्पाण्हस्तु | पिशद्दी कट्टपिहठी ॥ १६॥ चित स्मीरिफल्मापशवरताशभ करे ॥ धूसर* ॥ १३ ॥ म हि. गुगिव्कित्स _ गुणे ऑुक्राइप. परि गुणिएिड़् प्विगावि दुर्गेथ यह दो नाम अनिष्ट- बदोदेआ ३ रु बे डे | गधयुक द्रच्यके हैं जो आपगीव अर्थाव फ्ो अपक मासके गधकी समान गधवारा है ॥ इति घीवर्ग ॥०॥ पड़ विस सनिक हू शुक्ष भुध शव खेत | ल्‍्याय वष्िशि यह दे सोम थोड़े सेव पिगद श्येद पाण्डर ॥ १४ ॥ अवदात सित्र मिले भये थे लाइउणयें हैं गह वर्ण ब- बन्‍फिी+न+ ८० >नती “ * ऊ ूँ हे कह ब हु




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