सिद्धान्तसारसंग्रह | Siddhantasarasangraha

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Siddhantasarasangraha by नरेन्द्र सेनाचार्य - Narendra Senacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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:- संपादकीय अ-+-3कक-क ऑक क कैलन---८ $ ८५ £ े सिद्धान्तसारसग्रहका प्रस्तुत संस्करण प्रथम बार ही प्रकाशित किया जा रहा है । विपयकी दृष्टिस यह प्रथ-.तेल्ार्थाविगमसूत्र व गोम्मठसारादि सिद्धान्त ग्रथोकी परम्पराका हैं । इसमें सम्युग्दशन आदि रतनत्रय तथी जीवादि सात तत्लोका स्वरूप व्रिधिवत्‌ सरल रीतिसे समझाया (5 गया है जिसकी, रूपरेखा विषुयपरिचियते- जानी, जा सकती “है । सस्कृत पद्मात्मक इस ग्रथके रचविता आचार्य नरेच्रसेन है. जिनको प्रतिष्टादीपक नामक एक और प्रेथ योया जाता है. तथा जिनका काल विक्रम सब॒तकी वारहबी शतीका मध्यभाग सिद्र होता है | ८ अीकडओ,.. ुली >2क हज ध्++ + जक अटां जर्याह- रे प्रस्तुत >्रयकी' संस्करण प जिनदास पार्शनाथ फडकुले शात्री द्वारा तैयार किया गया हैं। उन्होने मूल पाठ दो प्राचीन हस्तलिखित प्रतियो परसे किया है, उसका हिल्दी अनुवाद भी किया है, प्रस्तावनामें विपयप्ृस्चियं, प्रथेंक कतृत्व व रचनाकाछाढिका विवेचन कियां.हैं,.तथा अनुक्रमणिकादि भी तैयार की है जिसके लिये हम उनके अलुगृह्वीत है । बल बज इस ग्रथका सस्करण व ग्रकाशन करानेमे सस्कृति सरक्षक सकें सस्थापक बह्मचारी जीवराज भाजकी विश्येप रुचि थीं। किन्तु हमे अत्यन्त दु.ख है कि प्रथका मुद्रणकार्य पूर्ण होनेसे पते ही उनको स्वर्वी[त्त हो गंया। हमे आशा है. कि अब भी इस अथ्रके ग्रेकाशनसे स्वर्गीय आत्माको सतोप छाम होगा |*- ह इस ग्रथमाला का जो यह सशोधन प्रकाशन कार्य विधिवत्‌ . चछ रहा है उसमे संघकी ट्रस्ट कमेटी तथा प्रबन्ध समितिके समस्त सदेस्योका हार्दिक सहयोग दी प्रधानत, कारणीभूत है। इसके लिये हम उन सब. के कृतज्ञ हैं.। हमे विश्वास है कि इस ग्रधके स्वाध्यायसे पाठकोको जन सिद्धान्तकी समस्त व्यवस्था समझनेमे सुल्भता होगी । है हा द्् ब्म्ग हज; ः प्रथमालाके सम्पादक - ड वा छा हि & पुर आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये २३1६1 १९७०७ हीरालाल जेन




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