नाट्यशास्त्रम् भाग - 3 | Natyashastram Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
592
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र् नाट्बशास्त्रम्
इतिवृत्तं तु नाट्यस्थ शरीर परिकीर्तितम् ।
पञ्चभिः सन्धिभिस्तस्य विभागः संप्रकल्पितः ॥१॥
अभिनवभारती
धपुन्रस्थ शरीरविधानसन्धिविधिलक्षणं वक्ष्ये” इत्यनेन (१८-१२७) शरीर-
मितिवृत्तात्मक॑ विधान च तस्य विधानरूपप्रकारात्मकं, सन्वयश्र मुखादयो, विधयश्र
सन्ध्यड्भस्वभावा लक्षणीयत्वेन प्रतिज्ञाता, तत्र शरीरमादों लक्षयितव्यर्मिति दर्शयति
इतिवृत्तं त्विति | तुशव्दा व्यतिरेके-- काव्यमात्रस्यानभिनेयस्याभिनेयस्य तावद् वृत्त-
मात्र शरीरं, नटनीयस्य त्वभिनेयरूपस्य इतति एवंप्रकास्तया यदुपस्कृत॑ वृत्त, अत
एवेतिवृत्तशब्दवाच्यं तद्वस्तु शरीरं रस. पुतरात्मा शरीराविर्भावकः, अत एवार्थ-
निर्मापकत्वात् अर्थतादात्म्यात् अर्थरूपताध्यासात् अर्थकन्नाननिवेशितत्वात् अर्थो-
मधघुध्ुदनी
पुनरस्य शरीरविघानसन्धिविधिलक्षणं वध्ये इत्यनेन. संकेतितम् ।
प्रकारात्मकम् प्रभेदात्मकम् | प्रकारों भेदसादृश्ये इत्यमर:। विधानम् विधान-
रूपम् विधानमित्ति पुनः श्रुत्यर्थक नाइ्लुनीयम्। नटनीयवस्तुन. विशेषेण धानम्
पोषक तद्रप विधानमनुप्ठानम् । विधय' सन्वीमामज्भामाश्व स्वों भावा स्वकीया:
क्रिया:। रस: पुनः विशेष: आत्मा। पुनरप्रथमे विशेषे चेति गणरत्नकोप.।
शरीराविर्भावक. काब्येतिवृत्तसमपंक अत एव वागात्मनां शब्दानाम् । इतिवृत्तैकार्थ-
योगक्षेमत्वम्ू । इतिवृत्तेत सह एकस्मिन्नथें वाध्ये अभिनेये दृश्ये, अनभिनेये पण्ये
बालक्रीड़ा
(मूल) अथ अब नादूयश्ास्त्र वी उन््नमीवें जध्याय वी बालवीड़ा का आरम्म
बरते है । इति वृत्त को नट्य का घरीर कहा है। पाँच सन्धियो से उसे विभाग की
गल्पना वी है ॥ ११ ॥
अड_गगण इससे सम्पन्न सम्पूर्ण शरीर मे इतिबृत मे स्पर्शनरूप क्थाभामोत्तेज-
नात्मक यूत्तियों वो. वैशिकी सात्वत्ती आदि नाम से प्रसिद्ध वृत्तियो वो करने वाला जो
रथापन है विधायक है ऐसी उन्द्रिया जिसका छारीर है उस महेश को मैं प्रणाम वरता ह
थाकी सब पूर्ववत् है। यह आन्तर अर्थ है 1
पुनरस्य दारीर विधान सन्धि विधिलक्षण वध्ये इस थद्ठारहवें अध्याय के अन्तिम
इलोक के उत्तराधे मे कधित अंश से इतिवृत्तात्मक घरीर और उसके विधानरूप पोपक्रूप
प्रवारात्मक भेदस्वरूप विधान माने अनुप्ठान और सन्धिया मुखादि तथा विधिया माने
सन्ध्यड,गस्व॒नाव ये सक्षणीय है ऐसी जो प्रतिज्ञा वी थी उसमें पहले शरीर का लक्षण वरना
है उसको दिखाते हैं । इतियूल तु। यहाँ तु दब्द वा थर्थे स्यतिरेक है । काव्यमात्र वा-
चाहे वह अभिनेय है अथवा अनभिनेय हैं-श्ारीर सभी वृत्त हैं। किन््त जो नटनीय है
अभिनेय है उसका इति माने इस प्रकार में उपस्दृत जो वृत्त है अत एवं जो इतिवृत्त शब्द
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