अमरकोश: खण्ड - 1 | Amarakosha Kand-i
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
362
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वर्ग: ५ ] प्रथमकॉण्ड | ( २० )
च्यठिद्वत्वमागुणात् ॥ १० ॥ समा- | गोर अवछक्ष घवठ अजुन हरिण पाण्डर
कर्षी तु निहारी सुरक्षिप्रांणवर्षण:॥ | पाण्डु यह सोलह नाम श्वेतके है ईपलाए्ड
इछ्ठगन्धः सुगन्धिः स्पादामोदी मुख- | पूसर यह दो नाम धूसर थोड़े खेतके है३३
वासन; ॥ ११ 0 हुए्णे नीठासितश्पामकाउश्पामठ-
मर्दन करनेंसे उठेभये ऐसे मनोहर गर्भम | भेचका+ ॥ पीतों गौरों हरिद्राभ*
परिमल शब्द वर्ष है अर्थात् परिमछ यह | पाठाशों हरितो हरितू ॥ १४ ॥
एक नाम मसलतेंसे उत्तन ये मनुष्योका | छोहितों रोहितों रक्तः शोणः कोक-
मन हरनेवाल्े गन्धका हे जो अतिनिहारी | नंदच्छविः ॥ अव्यक्तरागस्वरुण*
अरथादबहुतही दूर जानिवाला गन्ध है वह भा- | वेवरक्तसतु पादल' ॥ १७ ॥
मोद सत्तिक है इससे पर गुण शुक्रादिकपर्यन्त । छप्ण नीए असित श्याम कार श्यामछ
विशेष्यलिगत्व हैं अर्थात् इससे परें शुक्ृपर्यन्त | मेचक यह सात नाम काछे वर्णके है पीव
शब्द व्रिट्ठिग्म होते है ॥ १० ॥ समाक- | गोर हरिद्राभ यह तीन नाम पीलेके है पा-
पिन, निर्हारिन, यह दो नाम दूर जानेवाड़े | छाग हरित हरिठ यह तीस नाम हें वर्णके
गधयुक्त व्ृब्पके है सरक्ि घ्राणवर्पण इष्टगन्ध | हैं ॥ १४ ॥ छोहित रोहित रक्त यह तीन
* सुगन्धि यह चार नाम सुगययुक्तके है| नाम छाल्के है जो राल्कमल्कीसमान वर्ण
आमोदिन, मुखवासन यह दो नाम मुखकों | है वह शोणसज्िक हे और णो अव्यक्त राग
सुगन्वयुक्त करनेवाले वावूलादिकके है॥३ )॥ | अर्थाद् योडासा लास््वण है यह अरुण
पूतिगन्धिसतु दुर्गन्धो विस स्पादाम- | रे हें जीर जो शवेतयुक्त डास्वर्ण ह १ह
गरन्धि यत् ॥ शुक्शुभशुचिश्वेतवि- | सत्ञिक है ॥ कै ॥
शद्श्येतपाण्डरा' ॥ १२॥ अवदातः | *पाव' स्पात्कपिशों धृश्नपूमटी छा-
सितों गौरों वठक्षो धवलोप्जुनः ॥ | प्णटोहिते ॥ क्हार कवित् पिंड
हरिण३ पएडुर* पाण्ड्रीपत्पाण्हस्तु | पिशद्दी कट्टपिहठी ॥ १६॥ चित
स्मीरिफल्मापशवरताशभ करे ॥
धूसर* ॥ १३ ॥ म हि. गुगिव्कित्स
_ गुणे ऑुक्राइप. परि गुणिएिड़्
प्विगावि दुर्गेथ यह दो नाम अनिष्ट- बदोदेआ ३ रु बे डे |
गधयुक द्रच्यके हैं जो आपगीव अर्थाव फ्ो
अपक मासके गधकी समान गधवारा है ॥ इति घीवर्ग ॥०॥
पड़ विस सनिक हू शुक्ष भुध शव खेत | ल््याय वष्िशि यह दे सोम थोड़े सेव
पिगद श्येद पाण्डर ॥ १४ ॥ अवदात सित्र मिले भये थे लाइउणयें हैं गह वर्ण ब-
बन्फिी+न+ ८० >नती “ * ऊ
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