कहानी का रचना - विधान | Kahani Ka Rachana-vidhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जगन्नाथ प्रसाद शर्मा - Jagannath Prasad Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९३१)
चित्त में उप्तके प्रति भारर उत्पन्न होगा। प्रामे चलकर मदि उसी
व्यक्ति को देध के लिए प्रपता सादा राजपाट छत्सर्ग करते हम देखेंगे
हो बिल््मय जिमुग्ष हो उठेंसे । इस प्रकार गिस्मय-बिमुग्प होने में प्रदश्य
ही पहसेगाला प्रादर भाज उपरममे सप्रिविष्ट रहेगा। प्रामे चशकर
परि बह देछभकस देस की प्रात पर प्रपता बलिदान करता दिलाई
पड़े तो उसमें देदत्व का 'प्राभास पाकर हम मसद्गद चित्त होकर
झसकी अरणभूस यदि बटोरने लगे तो हमारौ इस जिया में पृथ के सब
प्रशाव प्ररिषत सममसे 'बाहिए 1 संझ्षप में कहा छा सकता है कि पूर्ण
के इस्के प्णथबा पहुरे प्रभाव भदि एकज होते लाये तौ प्रसार्जों की
एक ऐसौ सामूहिकता ऐैगार होगी दिससे हृदय में तीए प्रवेशनशीसता
भर उठेगी | बस्तुस” बदि देखा लाय तो कहानी में इसोौ प्रकार के
प्रभाव-पमष्टि की प्राकोक्षा रहती है !
एकोस्मुछ प्रमाधात्विति तरश चित्त को इस प्रकार प्राबिश करती
है चैंसे भूई की नोक | यदि किसी कोमल प्राघार पर सूई को रखकर
सैर मर का बजन उस पर पटक दिया जाब तो थो फसल दिल्लाईं पड़ेपा
बहू बैसा तही होगा लेसा कि सैर मर की बजन की कोई चौड़ी भीजय
पटक देने सै हो सकता है। किसी सुकौसी चीज को बंसाने में जँसी
ग्रफसता मिन्न सकती है बैसौ प्रस्प किसी मोजी भ्रीज को बंधाने में
नहाँ मित्त सकती । चक्त प्रमावान्यिति मुकीसी से मौ शुकौसी चीज गौ
हरह हृदम को प्राविद्ध कर देठी है । इसीलिए कुछल समौक्ूक धमभ्से
कौ चेष्टा करता है कि किस कहानी में झितनी चुभत ( एपयाएं) )
है। यह खुमत या सबेदन प्रमाजाम्बिति के माध्यम से प्रतिर्फालत होती
है। इसछिए कहाती का परम साध्य तत्व समप्टिप्रमाव ग्रणवा
अभावाग्यिति ही होती है ।
इस प्रकार कहातौ के परापवय-विधायक रक्त दोर्मो मुचप्र्मों का
विक्ष्पभ हो जाने पर प्रा्कॉछा रह लाती है, एक ऐसी स्यापक परिषाषा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...