युग निर्माण योजना - दर्शन स्वरूप व कार्यक्रम | Yug Nirman Yojana Darshan Swarup Va Karyakram

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Yug Nirman Yojana Darshan Swarup Va Karyakram by ब्रह्मवर्चस - Brahmvarchas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्र सूक्ष्मअगत की दिव्य-प्रेरणा से उद्भूत संकल्प हो युग निर्माण योजना के रूप में जाता जाता है। व्यक्ति के चिन्तन-चरित्र-व्यवहार में बदलाव, व्यक्ति से परिवार एवं परिवार से समाज का नवनिर्माण तथा समस्त विश्व-वसुधा एवं इस जमाने का, युग का, एक 'एस' का नवनिर्माण स्वयं में एक अनूठा अभूतपूर्व कार्यक्रम है, जिसकी संकल्पना परप्रपुण्य गुरुदेव द्वाए की गई एवं अपली जामा पहनाया गया। यही युग निर्माण की प्रक्रिया परमपृज्य गुरुदेव के नवयुग के समाज, भावी का के आगमन की घोषणा का मूल आधार बनी। इसी का विवेचन विस्तार से प्रस्तुत वाड्ूमय में हुआ है। परमपृण्य गुरुदेव इसका शुभारम्भ मथुरा में आयोजित १९५८ के सहस्कुण्डी गायत्री महायज्ञ से हुआ बताते हैं, जिसमें धर्म-तंद्र के माध्यम से लोकमानस को विदार-क्रान्ति प्रक्रिया के प्रवाह में ढालने की घोषणा कर विधिवत गायत्री परिवार अथवा युग निर्माण मिशन की स्थापना कर दी गयी थी। इसका स्वरूप उनने इस प्रकार बनाया कि इस विचारधारा का समर्थन करने वाले सहायक सदस्य, प्रतिदिन एक घण्टा व दस पैसा ( बाद में बीस पैसा अथवा एक दिन की आजीविका) नित्य देने बाले सक्रिय सदस्य, प्रतिदिन चार घण्टे युय परिवर्तन आन्दोलन के लिए समर्पण करने वाले कर्मठ कार्यकर्ता एवं आजीवन अपना समय लोक-सेवा के निम्मित्त लगाने वाले लोकसेवी- वामप्रस्थ- परिव्राजक कहलायेंगे। आत्म-निर्माण, परिवार-निर्माण , समाज-निर्माण की त्रिविध कार्यपद्धति इस मिशन की बनायी गयी। स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन एवं सभ्य समाज की अभिनव रचना की धुरी पर साऐ प्रयासों को नियोजित किया गया। बौद्धिक, नैत्तिक, सामाजिक क्रान्ति की आधारशिला पर तथा प्रवारात्मक, रचनात्मक और संघर्पात्मक कार्यक्रमों की सुब्यवस्थित नीति पर युग निर्माण का सारा ढाँचा बनाया गया। , हे इस प्रकार वाइमय के इस खण्ड के माध्यम से उस संगठन ने जन्म लिया जो आज देव संस्कृति दिग्विजय करता हुआ सारी विश्व-वसुधा में नवजागरण का शंखनाद कर रहा है। पूज्यवर सदा से एक ही बात कहते व लिखते रहे हैं कि धर्मतंत्र के माध्यम से ही राष्ट्र का भावनात्मक नबनिर्माण संभव है। सारी बहिरंग को परिस्थितियाँ, भौतिक विकास कौ दिशा में किये जा रहे प्रयास प्रत्यक्षवादी उन्मादी प्रगति की ओर आज मानवता को ले जा रहे हैं। आज इसी कारण जीवन का ओई पक्ष चिकृतियों से अछूता नहीं है। युग निर्माण की प्रक्रिया धर्मतंत्र को विडम्बनाओं से मुक्त कर उसके परिष्कृत उपयोग तथा जाग्रत आत्माओं के माध्यम से नवनिर्माण के निर्मित्त समामान्तर स्तर पर प्रयासों पर केन्द्रित है। राजत॑त्र आज जहाँ लोभ और भय के आधार पर ओंकुश स्थापित करने की बात कहता है, वहाँ धर्मतेत्र मानवी अंतःकरण में दिव्य ग्रेरणाओं का संचार कर व्यक्ति को अपनी गतिविधियाँ बदलने को विवश कर देता है। बिना किसी बाहरी दबाव या प्रयास के मनुष्य अपने आप अपनी भावनाओं के आधार पर अपने को बदल लें, यह क्षमता धर्म के अतिरिक्त और किसी तत्त्व में नहीं द्ै 1 नवसुग के नवनिर्माण की भूमिका सम्पादन कर सकना, केवल जाग्रत, जीवन्त और कर्त्तव्यनिष्ठ लोगों द्वारा ही संभव है। उसी को लक्ष्य मानकर भावनाशीलों का परिकर युग निर्माण परिवार के रूप में खड़ा किया गया है। ह पूज्यवर का अभिमत रहा है कि युग परिवर्तन के लिए लोकशिक्षण धर्मतत्र के माध्यम से होना अत्यधिक अनिवार्य है। गायत्री, यज्ञ एवं संस्कार प्रक्रिया के द्वारा यह ढाँचा पूज्यवर ने तैयार किया एवं क्रमबद्ध दंग से विचार परिवर्तन की प्रक्रिया संपन्न करतो हुई यह यात्रा अब इक्कीसर्वी




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