पंचदशी भाषावार्ता | Panchadashi Bhashavarta

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Panchadashi Bhashavarta by स्वामी आत्मस्वरूप - Swami Aatmaswaroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नतल्विवेक प्रकरण १ कक कल्प आश्रय भवा। इसप्रकार अन्योन्यआश्रवद्योपकञ्ञया। अर जुकर कहट्ट तीसरे विकल्पने दसरे विकल्पके आशअ्रयकाी सबिक- ल्‍प कीया तब तो सरे विकल्पनेभी सविकल्पके आश्रय रहिणा हू तब तीसरे विकल्पके आश्रयन सविकल्प किसने कीया?प्रथम- विकल्पने तिसके आश्रयकों सविकलप कीया अथवा दसरे विक- ल्पने तीसरविकल्पके आश्रयकों सविकल्प कीया अथवा चोथे- विकल्पने तीसरे विकल्पके आश्रयकों सविकलप कीया? जेकर क हैं प्रथभविकल्पने तीसरे विकल्पके आश्रयक्तों सविकस्पकीया, तब चक्रिकादोपकी प्रातिहोई। कहिते जो प्रथमविकल्पके आश्र- यकों सविकल्पकीता सीदसरे विकल्पने अर दर्सरेविकल्पके आ- श्रयकों सविकलप कीया सी तीसरे विकल्पने अर तीसरे विकल्प के आश्रयकों सविकस्पकीता प्रथमविकल्पने इसप्रकार चक्रिका प्राप्त भ्यी।अर जेकर कहें तीसरे विकल्पके आश्रयकों सविकल्प दुसरे विकल्पने कीयाह तब अन्योन्याश्रयदोष होताहै।काहेते जो दुसरे विकल्पके आश्रयकों सविकल्पकीया तीसरे विकल्पने अर तीसरे विकल्पके आश्रयकों सविकल्पकीया दसरे विकल्पने अर जेकर कहें तीसरे विकल्पके आश्रयकों सविकल्प कीता है, चोथे विकल्पने तद चाथे विकल्पनेभी सविकल्पके आश्रय रहिणाहें,त द चोथे विकल्पके आश्रयकों सविकल्प करणेवाला पंचवां विक- ल्प होवेगा। इसीतरां पंचवें विकल्पके आश्रयकों सविकल्प कर- णेवाला छिदाँ विकल्‍प होवेगा । इसीतरां आगेआगे एकएक वधता जाएगा इसका नाम अनवस्थादोप है ॥ ५५ ॥ जेते दोपां- को प्राप्ति निर्वकल्पविये विकल्प है के सविकल्पविपे विकल्प है। इसविचारम होती है तेते दोपांकी प्राप्ति एन्ना प॑चां स्थानांविपे




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