महाभारत भाग ३ | Mahabharat Bhaag 3

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Mahabharat Bhaag 3 by मानकचन्द - Manakchand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शान्तिपव्वे । करना वुद्धिस्नान पएुसंषकी उचितं है। इस स्थावर जज्मसे युत्षा सम्पूर्ण एथ्वी प्राप्त करके सो जो पुरुष राज्यसुख बंहेों भोग «करते, उनका जोना जो निष्फल हैं। जो लोग बब- बासी होकर जीवन -चारंण करते हैं, परन्तु और विषय बायनाकी ससता उबके चित्तंसे नहों छूटती; वे शीघ्र हो रत्यू के करार ग्राससें पतित होते हैं। है सद्धारआज। आप इस भ्राव्माकी प्राणियोंके भीतर बाइर प्रत्यमात्से रूपसे स्थित रुससिये ; जो छोग आत्साको ऐसा जान सकते हैं, वे मह्ामयसे सुत्ता होते है। आप इस लोगोंके पिता, खाता भ्वाता और खुदरू है; इससे मैंने दुःखसे आते होकर जो कुछ प्रदोप- मुक्त बचन कहा है, उस अपराधको -चजंंसा कीजिये , क्यों कि मैंने जो कुछ कहा है,' चाहे वच न्याययुत्त हो प्रथवा अन्याय पूरिंल हो होवे, केवल आपमें भक्ति रहनेके कारणसे हो सैंने कहा है। १३ अध्यय समाप्त | औबेशरपायन सुनि पोले, है राजन जयसे- जय | सीमसेन गादि साइयोंदे वेदविद्धित बच नोंको ऋह्क्षे इस प्रद्यार घर्सराज घुधिष्ठटिरको प्रयाधित किया ; तीभी जब उन्होंने कुछ उत्तर न दिया। तब सहत्‌ असिजन- रुस्पन्त च्रायत- नेनो स्त्ियोमें शग्ममण्य ओणती टद्रोपदी देवीने कुछ कच्नेकी अभिद्याप को । वह घर्म जान- नेषालो, चस्मदशवो, ई | 2७४०७७०७: मिएलयोणी पाद्चाली | २३४७ सोमी घुघिष्ठिरकी जोर फ्ठात्ष करके सनो- हर शात्त बचनसे उनन्‍्दे सस्वीचन करके बोली, सड्डाराज | तुम्दारे . जाता सूखे करठसे युक्त चातककोी भांति चिन्ञा रहे हैं, तोभी तुम उच लोगोंको अभिवन्दन नहों करते हो ? बढ़ल दिनोंधे दुःख भोग 'वारनेवाले महासतवाले' हाथोके समान पराक्रणी दइव भादयोंकी आए यथा उचित बचनोंसे आच न्दित कोजिथे ।' : “है राजेन्ट्र | पहले ह तवनगें जब तुम्दारे थे सब साई सर्दी, वाशु और गर्मोंसे शत्यन्त कं शित छए थे ; तब लंस समय आपने कहा था--है शत ओंको. नाश करनेवाले शुद्धविजयी स्ाता लोगो ] हम सब कोई - मसिलके थयुरद्दधेमू- सिरे टुव्थोचिन की सारकर सब ' अभिन्वाष सिंद् करनेवाली एष्वीकी भोग करेगे ; और जब तुम ब्लोग शत्र्‌ सेवाके रथियोंको रथ रह्चित श्र उहाथियोंकी सारकर उन सब रघों और चतुर- ड्रिझो सेनाके झूत शरौरोंसे एथ्वोको परिप्रूरित करके अनेक' दत्तिणासे युक्त अनेक भांतिके यज्ञोंका प्रनुद्ठाठ करोगे, उस समय तुम जीगोंका यह सब दुःख सुखमें परिणत होगा” है घस्मालाओसें सुख्य महाराज] आप उस समय इस प्रकार घोरजयुक्त वचन कच्के इस ससय किस कारगायसे इस. लोगोंका सब उत्मा- इरहित कर रहे हैं? देखिये कादर पुसुष दाद्यपि एथ्वी वा ऐश्ड्थे सोगनेका अधिकारों नहों होसकता 1 और जैसे कीचडुमें मछदों नहों रह सकती , वैसे हो नपुसकको घरदें पुद्र कलत चहक्यें रहइते। राजा दण्ड रचित सवाभाषिक हो सावदो थी उसपर सी राजा | होनेसे प्रसावशुक्त एपीकी सोयनेसें तमथ नही शुधिष्ठटिर उसका रुद्य सम्मान किया करते थे, इस हो कारण वह उनके ससोप बहुत कुछ भप्तिमान मुक्त चचनोकी प्रदाशित कर सकतो थी। बह हाधियोओे वीचसें स्थित यूयपतिकी भांति रूइ शोर शाद लक रुूप्ाव पराक़सी भारयोके वोचसे यहे छवए राफ घिरोमणि विद ) ' नहीं पासत्नी। सचह्ाराज! सब छो सक्तता और उसको प्रजा भी कदाप सुख प्राणियोंके ऊपर पमितमसाव, दान, पझष्ययन ब्राक्मणक्े घस्स दुद्दोद्ा बाश, साधु ्ट४े 1: ना लक छंद पार दे चुटना गा चक्त्क ५४ ््ज कि]




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