बाल कालिदास | Bal Kalidas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रघुबश ७
तात्पये यह है कि प्रतापशाल्ञी राजा के रहते प्रजा का
किसी तरह का कष्ट नहीं द्वोता ।
0 ।
पर्य्यायपीतसय सुरैंहि माशो-
कलाक्षय श्छाघ्यतरो हि बृद्धेः ॥ १६ ॥
पारी पारी करके देवता ल्लोगों के पी जाने से ( क्ष्योंकि
चन्द्रमा अम्ृतमय है, और अम्रत द्वी देवता लोगों का भाजन
है ) जे चन्द्रमा की कल्लाएँ धदती हैं, वह उनका घटना
घढने की अपेक्षा सराहनीय है| १६ ||
तात्पये यद्द कि अपनी जातिवाल्लो का दुख मिटाने में
दवेनेवाज्ञी दरिद्रता अ्रमीरी से कही बढ़कर है ।
( ८)
# # # निगलितास्थुगर्भम्
शरदूधन नादेति चातऊराउपि ॥ १७१1
पानी की वर्षा करके ख़ाक्ली हे! गये शरद् ऋतु के वादत्न
का चातक भी ( पानी के लिए ) नहीं दिक् करता ॥ १७॥
झर्थात् दान करने से दरिद्वावस्था को प्राप्त दानी मनुष्य
को, समझदार लोग, श्राप प्रह्मन्त दरिद्र द्वेकर भी, मॉग-
समॉगकर पीड़ा नहीं पहुँचाते ।
( १६ )
उ९्णत्वमग्न्यातपसंप्रयोगात्
शेत्य' हि यत् सा प्रकृतिजेलत्य ॥ ४७ ॥
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