गोपथ ब्राह्मण भाष्यम | Gopata Brahmana Bhashya

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Gopata Brahmana Bhashya by क्षेमकरणदास त्रिवेदिना - Kshemkarandas Trivedina

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रैप ) कृत॑ में दक्षिणे हस्ते जयो में सष्य आहित! । गोजिदू भूयापमश्वजिद धनजयों हिरण्यजित्‌ || ४ ॥ अथवं० ७।५०।५॥ हैं सवपोषक परमेश्वर | ] ( कृतम्‌ ) कम' [ वेदबिहित व्यवहार ] ( में मेरे ( न ) दाहिने ( हस्ते ) रप में और (जय ) जीत (में) मेरे ( सके ) बायें | हाथ ] में ( आहित ) ठहरी हो | मैं ( गोजित्‌ ) भूमि जीतने वाला, ( अप्रव- जित्‌ ) घोड़े जीतने वाला, ( धनंजयः ) घन्र जौतने वाला और ( हिरण्यजित्‌ ) तेज जीतने वाला ( भूयासम्‌ ) रहू ॥ ४॥ है परमात्मन ! आप ऐसी कृपा करें जिससे हम सदा वेदविहित कर्म मे पुर पषाथ के साथ आगे बढते हुमे संसार में सुखी रहें, और सुपात्र वीर होकर आपसे आपकी कृपा का दान लेबे ॥ ४ ॥ यत्रा मुदाद। सुकृतो मंदन्ति विहाय राग तस्व साया | अश्लोण। अह्गरह ता. रबर्गें तत्र पश्येम पिता च॑ पुत्नान्‌ ॥ ५ ॥ अथरव० ६ । ११५० | ३ ॥ ( यत्र ) जहाँ पर (सुहाद ) सुन्दर हृदय वाले, ( सुकृत ) सुकर्मी छोग ( स्वाया ) भपने ( तत्व ) शरीर का ( रोगम्‌ ) रोग ( विहाय) छोड कर (मदन्ति) आनन्द भोगते है। ( तत्र ) वहां पर (स्वर्गे) स्वर्ग [ सुख ] में ( अदलोणा ) धित्ता लंगडे हुपे और (अज्भ ) अड्भो से (अछुता ) बिना ढेढ़े हुमे हम ( पितरी ) माता पिता (च) और ( पुत्रान्‌ ) पुत्रों [ सन्‍्तानो ] को ( पश्मेम ) देखें ॥ ५ ॥ है जगत्पिता परमेदवर ! हम सक अ्रह्मचय॑ क्रादि सेवन से वेदानुगामी सुकर्मी और कल रहें और उस स्वग में रहकर हम सब मिलकर प्रयत्लपृर्वक स्थिर सुख पावें ॥ ५॥ २--गोपघन्राह्मण क्‍या है ॥ चार वेदो के चार ब्राह्मण है, ऋग्वेद का ऐतरेय, यजुरवेद का शपथ, साम वेद का साम, और अथवंबेद का गोपथ। विदित नही है कि गोपथब्राह्मण के कौ कर्ता भे। यह पद तो तीन शब्दों से बत्ता है, गो. पथ + ब्राह्मण, जिनकी सिध्वि इस प्रकार है-गमेडों (3०२। ६७ ) गम्ल गतौ-जाना, जानता और पाना. डो प्रत्यय । पाने योग्य पदार्थ गो शब्द वाणी, भूमि, स्वर्ग, इचिय आदि का वान्रक है पथ गती--अच्‌ प्रत्यय | पथ नाम का का है। बृ हेनोंसच्च (७० ४| १४६ ) बृहि वृद्धौ--मनिन, लकार का अकार और रत्व होकर ब्रह्मत दव्द व्र्ह् सिद्ध होता है फिर तस्मेदम्‌ (पा०४। ३। १२० | बहाएं, पा जा ब्रोह्मण [ त० लिड्ध ] शब्द बेचा, जिसका अर्थ ब्रह्म परमेश्वर वा वेद का ज्ञात्र है इससे गोपथब्नाह्मणम्‌ का यह अथ हैं-गो, वाणी अर्थात्‌ वेदवाणी, भूमि अर्थात्‌ पृथियव




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