जैनेन्द्र : व्यक्ति, कथाकार और चिंतक | Jainendra Vyakti Kathakar Aur Chintak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जैमेसस जीवन स्यक्तिस्य शौर कृतित्व पर सर्वागीय दष्टिपात.. १३ सुनीता' का जन्म 66 महँ फिर ऋपमचरध मिले शोर उन्हों से घाग्रह किया कि सिज्रपट में कुछ पारशवाहिर लिक्षना होगा । बाठ चलती गई कि भ्रस्त में एक रोज ऋपषमचरथ कै जैनेस्ट श्री को घर पर बुलाया धौर प्रचातक दरबाजा बन्द कर दिया । छिक्त कर नोचे चिट सरका दी कि पह्चसा परिच्छेर सिख दोसे तब दरवाजा लुसेया। ऐसे 'युनीता का भारम्भ मुरीता का भारम्भ हुप्रा। जो पृत्रिदर्ा शिक्ती पई थे दित्रपटा के प्रणफे प्रक में ही एपी- एस विश्ापम के साथ कि छपस्याप क्रमछ इस पत्षिका में लिकलेया । सप्ताह के सप्ताह उनका प्रादमी पाता घोर जेनेस्द्र जी से नई किस्त शिक्षा ले जाता। शे-तिहाई उपस्यास इस हरह छपा होपा। पंप सीधा स्ताद मे दया । ऐसे बह भुनीता बनी जो प्रद तक बिबादइ का विपय माती जाती है। त्यागपत्र' झऔौर 'कल्याणी' घुस हे पहचात्‌ दिएदी धर्म रश्ताकर अम्बई के माज्तिक लायूराम 'प्रेमी' थी ले बैनेए जी प्रे कहा कि एक सी के रूगमप प्रृष्टों का उपभ्याध धुम्हें [ बैका है प्रेमी” जी हारा बेस की हिग्दी साहिए्य में भाए थे भौर धपने को उनका कृतज पदूभन करठ ये । इस लिए घाएह टल गहीं सता था धौर त्यायपत्र' की प्टू हु) 'त्यासपत्र सोष्रय हुआ भौर 'प्रेमी' जी के पगुरोप पर फिर “इस्पापौ की रचा हुई । इस की प्रणणा दे सम्द प में पैनेम्दर ही रा कपन है “परिस्ती मे इंडिया भाप! की सपस्त कपित्री भुस्तल्त बुमारी डाबटरी की प्रदिदत करती थीं। उस का प्रणानक देदहाम्त हो यया। दिल्‍ली के साहितीयक दोज में बहू प्रप्ठी परिचित थॉ प्रौर पम्पयंगीप मानी जाती थीं। कस्पाभो मानों जुदेगट जी दी पार से उर्दी की स्मृति का हपण है।” यह सब ३७-१८ ठक भी बात है । ? इसी समय एफ दुर्घटसा हुई । इलम चसती पी पर कशान बन्द थी) दुर्पोष ऐसा हुप्रा दि झते पसे मे उश्सय हुप्रा पोर जैनेस॑द्र जा मे पाया ढ़ि मंच पर बोशमे के [हए उन्हें पाना पह़ रह के लिए उन्हें घना पड़ रहा है। बोलना दिफस रहीं समा गया सेविंग इसमे कसम जो बरद हुए तो आर॥ चोदह साख ठक फिर सगमय उटी ही जहा इस में एप कृतरण धौर भी हुप्ना । उनती दिआर पारा पसे पर जावर धटकयी धर टशुरा बर रह जाती थी । पेसे पर इस बोच कई सैश सिर गए पे घोर बहालियां भी बगी पी । सद वा मूस भाएर यह था ि घताऊंग थो पददि बतिम है छा पम के डा घौर पम के द्वराए घाएमा बा झा उतना रहीं होता शिवमा शोषण




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