संक्षिप्त महाभारत | Sankshipt Mahabharat

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Sankshipt Mahabharat by श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८३६-कालकवृक्षीय मुनिका राजा जनक और क्षेमदर्शीमिं मेल कराना ३७-समुद्र और नदियोंका संवाद द ८३८-चाण्डालका आना और जाल कट जानेसे चूहे तथा बिलावका भागना ८5३९-पूजनी चिडिया और राजा ब्रह्मदत्तका संवाद छ४०-कबूतरवा अतिथिसत्कार--व्याघको भोजन देनेके लिये स्वय आगमें कूदकर प्राण देना ८४१-जनमेजयका इन्द्रोत मुनिकी शरणमें जाना . . छ४२-भगवान्‌ शंकरका मरे हुए वालकको जिलाना प८४३--राजधर्मा घकका गौतम ब्राह्मणकी थकावंट दूर करनेके लिये अपने पखोसे हवा करना ८४४-गीदड़रूपधारी इन्द्र और काश्यप ब्राह्मणका संवाद ८४५-कंलास-शिखरपर बेठे हुए भूगुजीसे भरद्वाज मुतिका प्रश्न करता... ८४६-जापक ब्राह्मणको सावित्री देवीका दर्शन ८४७-जापक ब्राह्मणके पास राजा इक्ष्वाकुका आना पडंप-मनु और बृहस्पतिका संवाद 0४ पो४९-भगवान्‌ बराहके द्वारा देत्योका संहार .. . ६५०-महपि पञ्चशिखका राजा जनकको उपदेश ८ं५१-देवपि भारद और इन्द्रका गद्भातटपर सूर्योपस्थान करना और आकाशसे आशा आदि देवियोके साथ लक्ष्मीजीका प्रकट होना ८५२ए-भगवान्‌ श्रीकृष्णका उप्रसेनसे नारदजीके गुणोका वर्णन आब ८५३-व्यासजीका शुकदेवको उपदेश ८५४-जाजलिकी जटामें चिड़ियोका घोंसला बनाकर रहना ४५५-पैरोपर पड़े हुए अपने पुत्र चिरकारीको गौतमका आश्वासन देना हर ८४५६-तपस्वी ब्राह्मणको कुण्डघार मेघका दर्शन देना ८५७-शुकाचार्यः अनुरोधसे सनकादिकोका * बृब्नासुरको उपदेश ८५८-इन्द्रपर ब्रह्महत्याका आक्रमण ८५९-दक्षके यज्ञ्में दधी चिके द्वारा भगवान्‌ झंकरको पूजा न होनेका विरोध . - शर ८६०-भहादेवजी और भवानीके क्रोधसे वीरभद्र और भद्वकालीका प्रादुर्भाव ८६१-अरिप्टनेमिका राजा सगरको उपदेश ( १७ ) पृष्ठ-संख्या * ११४९ ११४५ ११७० ११७२ ११७६ ११७९ ११८२ « (१९३ श्र०्३ श्र्ण्ड १२१३ १२१४ १२१६ श्स्र्र १२२९ १२३७ » रश४० कर १२६० १२६६ १२७१ - १२७७ १२७९ शस्त्र श्श्घ२ » करे है न पृथ्ठ-संख्या ८६२-राजा जनकको पराशर मुनिका उपदेश . .. १२९२ ८६३-साध्यगणोंको हंसका उपदेश ००० रै३े०० ८६४-वमिष्ठका राजा करालजनकको उपदेश , .. १३०५ ८६५-राजकुमार वसुमान्‌का एक ऋषिके पास जाना १३१० ८६६-याज्ञवल्वयके ध्यान करनेपर 3>कारसहित सरस्वतीदेवीका प्रकट होना ८६७-व्यासजीको भगवान्‌ शंकरका वरदान देना ८६८-शुकदेवका प्रादुर्भाव और वहाँ पार्वतीसहित भगवान्‌ शंकर तथा इन्द्रका आगमन न हैश्रु ८६९-मिथिलाके 'राजद्वारपर शुकदेवजीका द्वार- पालोंद्वारा रोका जाना ... ८७०-स्त्रियोंस घिरे होनेपर भी शुकदेवजीका निविकारभावसे ध्यानस्थ होना - १२३ ८७१-राजा जनकका आतिथ्य स्वीकार करके शुकदेवजीका उनसे प्रइन करना « ३२४ 5७२-ध्यासजीके आश्रमपर नारदजीका आना और उनकी उदांसीनताका कारण पूछना » १३२६ ६७३-शुकदेवजीको नारदजीका उपदेश »« १३२७ ८७४-भगवान्‌ नर-नारायणके द्वारा नारदजीकी दद्घाका समाधान. --- रैरेरे४ ८७५-श्वेतद्वीपमें भगवान्‌का विश्वरूप व्रूप धारण करके नारदजीको दर्शन देना - (१३३९ ८७६-त्ह्माजीके समंक्ष मगवान्‌का हयग्रीवके रूपमे प्रकट होना - रैशे४६ ८७७-मभगवान्‌ विष्णुके द्वारा मघु और कंटमका वध १३४६ ८७८-नागराजका गोमतीके तटपर जाकर वहाँ बैठे हुए ब्राह्मणसे उसके आनेका कारण पूछना ८७९-व्याघका गौतमीके पुत्रकों डसनेवाले सांपको पकड़कर लाना और गौतमीका उसे छोड देनेकी आज्ञा देना ८ ०-धर्मका अम्निपुत्र सुद्शनको वरदान देना - ८८ १-कऋचीक मुनिके चिन्तन करनेपर गज्भाके जलसे एक हजार दयामकर्ण घोड़ोका प्रकट होना ८८२-व्याधके विपैले वाणके प्रभावसे एक महान्‌ वृक्षका सूखना ८घ८३-सोतेकी भक्तिसे प्रसन्न होकर इन्द्रका सूर्ख हुए वृक्षको हरा-भरा कर देता ८८४-गीदड और बानरका संवाद द८्श-सिंद्ध पुरषके द्वारा ब्राह्मणको गद्भाजीका माहात्म्य चुनाता १३१५ १३२१ शै३२२ १३५१ १३५३ १३२५७ श्श्श५८ १३५९ १६१६० १३६३ १२७३




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