हरिवंश पुराण का सांस्कृतिक विवेचन | Harivansh Puran Ka Sanskritik Vivechan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
345
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कुष्णचरित्र १३
अनुसार कृष्ण के अनेक स्वरूपो का समावेश एक कृष्ण में हुआ है । प्रारम्भिक पुराणों
में कृष्ण का अंशावतार उत्तरकालीन पुराणो में सोलह कलाओ से युक्त पूर्णावतार
हो गया है। कृष्णचरित्र के विभिन्न स्वरूपों का समन्वय ही उत्तरकाल में उनके
पूर्णावताररूप को जन्म देता है। उपनिषद, महाभारत, गीता तथा हरिवंश में कृष्ण का
विकासशील व्यक्तित्व विष्णु० तथा भागवत में परिपूर्णतम हो गया है।'
कृष्ण के विशाल चरित्र में अनेक वृत्तान्तों तथा उपवृत्तान्तों का समन्वय हुआ
है। इन वृत्तान्तो में कृष्ण का दो प्रकार का व्यक्तित्व प्रमुख है। हरिवंश तथा
पुराणों में प्रारम्भ में भोपालक्ृष्ण का स्वरूप दिखलाई देता है। दाशंनिक तथा
सलाहकार कृष्ण का व्यक्तित्व इसी व्यक्तित्व के साथ समन्वित हो गया है।
कृष्ण के दूसरे प्रुकार के व्यक्तित्व के दर्शन प्राचीन ग्रन्थों में होते हैं। महाभारत,
महाभाष्य, गीता, मेंगास्थनीज तथा एरियन के कथन, छान्दोग्योपनिषद् तथा अष्टा-
ध्यायी कृष्ण के द्वितीय स्वरूप पर प्रकाश डालते हूँ ।
डॉ० भण्डारकर' का मत बालकृष्ण की भक्ति को विदेशी सूचित करता है।
सवप्रथम पश्चिम की भ्रमणशील आभीर जातियाँ इस सस्क्ृति को अपने साथ उत्तर-
पश्चिमी भारत में छायीं। डा० भण्ठारकर के अनुसार यह आभीर जाति ही अपने
साथ क्राइस्ट' देवता को छायी, जिसको भारतीयों ने अपनी भाषा की प्रवृत्ति के
अनुसार कृष्ण बना लिया।
कैनेडी' भण्डारकर के मत का समर्थन करते है। भण्डारकर के अनुसार क्ृष्ण
की संस्कृति गुर्जरों के द्वारा पाँचवीं शताब्दी में उत्तरपदिचिमी भारत में छायी गयी।
वेबर ने बौद्ध और जैन ग्रन्थों में कृष्ण के मानव चरित्र के प्राधान्य की सूचना
दी है।'
डा० भण्डारकर, केनेंडी तथा वेबर का मत समीचीन नही प्रतीत होता। बाल-
कृष्ण की भक्ति भारत के लिए विदेशी वस्तु नही है। रे चौधरी सुद्दर वेदों के अन्तर्गत
१० विष्णु० ५. ३े: १२; २०० ९६-१०५;
भाग० १०. हे १३०२२, २४-३१;
ह... 9 रे एुल्टेंफ
2... ४29930ए1570, $#8/एं9॥ 9. 37-38:
3. 19.88. 1907 9. 976:
4. अल: :; कै, प्र०, झड़ 1907) 9. 280:
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