हरिवंशपुराण | Harivansh Puran

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Harivansh Puran  by पन्नालाल जैन -Pannalal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय सूची २५ विषय पृष्ठ धमंका वर्णन करनेके बाद विंस्तारसे श्रतज्ञान- का व्याख्यान किया श्रुतज्ञानके पर्याय, पर्यायसमास॒ आदि २० भेदोंका वर्णन, उसीके अन्तर्गत आचारांग आदि अंगोका वर्णनीय विषय और उनके भेदोपभेदोंका निरूपण १८५-१९० दृष्टिवाद अंगके पृवंगत भेदोंका वर्णन, अंगबाह्य श्रुवका निरूपण, समस्त श्रुतके अक्षरोंका परिमाण, मतिज्ञानका स्वरूप तथा उसके भेदोंका कथन, अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञानका निरूपण तथा उनके प्रयोजन आदिकी चर्चा १९१-१९७ १८५ एकादद सर्ग समवसरणसे वापस आकर भरतने पृत्रजन्म- का उत्सव किया और चक्ररत्नकी पूजा कर दिग्विजयके लिए प्रस्थान किया, पूर्व, दक्षिण और पश्चिम दिशाके देव और मनुष्योंको वश कर उन्होंने उत्तर दिशाकी ओर प्रयाण किया और विजयार्ध देवका स्मरण कर उसे परास्त किया, तदनन्तर तमिस्र गुहाद्वारसे उत्तर भरत क्षेत्रमें प्रवेश किया १९८-२०० उत्तर भारतके म्लेचछ राजाओं तथा उनके सहायक मेघमुख देवको परास्त कर समस्त म्लेच्छ खण्डोंपर विजय प्राप्त की । इस तरह साठ हजार वर्ष तक षट्खण्ड भरतकी दिग्वि- जय कर भरत चक्रवर्ती अयोध्याके निकट आये २००-२०२ जब चक्ररत्न अयोध्याके प्रवेश-हारपर रुक गया तब भरतके पूछनेपर बुद्धिसागर पुरो- हितने उसका कारण बताया । भरतने अपने सब भाइयोंके पास दूत भेजें। बाहुबडीको छोड़ अन्य भाइयोंने राज्यसे व्यामोह छोड़ दीक्षा ले ली परन्तु बाहुबलीनें दृष्टियुद्ध, जल- युद्ध और मल्लयुद्ध में भरतको परास्त कर दिया । भरतने कुपित हो उसपर चक्ररत्न चला दिया परल्तु चक्र भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं सका । , २०२-२०४ [४] विषय पृष्ठ इस घटनासे बाहुबलीने विरक्त होकर दीक्षा धारण कर ली । उनकी तपस्याका वर्णन २०४-२०५ चक्रवर्ती भरतके वैभवका वर्णन २०५-२० ८ द्वादश सर्ग भरत समवसरणमें जाकर शलाकापुरुषों- का चरित्र सुनते थे। उन्होंने ठीथंकरोंके स्मरणार्थ अपने द्वारपर २४ घण्टियोंकी वन्दनमाला बँधवायी थी । उन्हीके साम्राज्य- में सर्वप्रथम जयकुमार और सुलोचनाका स्वयंवर हुआ २०९-२११ विद्याधर और विद्याधरीको देख जयकुमार और सुलोचना म्‌ृच्छित हो गये। अनन्तर जातिस्मरण द्वारा अपने पूर्वभव जानकर बहुत प्रसन्‍न हुए । सुलोचना द्वारा पूर्वभवोंका वर्णन रतिप्रभ देवके द्वारा जयकुमारके शीलकी परीक्षाका वर्णन जयकुमार द्वारा सुलोचनाके लिए भगवान्‌ ऋषभदेवके समवसरणका वर्णन । जयकुमार- ने स्वयं १०८ राजाओंके साथ दीक्षा ले ली तथा गणधरका पद प्राप्त किया । भगवानके ८४ गणधरोंके नाम एवं शिष्य-परम्पराका वर्णन । कैलछास पवंतपर योग निरोध कर भगवान्‌ ऋषभदेव मोक्ष पधारे २११-२१५ २११ २११ त्रयोदश सर्ग चक्रवर्ती भरतने अकंकीतिको राज्य दे दीक्षा धारण कर ली ओर वृषभसेन आदि गणघरों- के साथ केलास पर्वतसे मोक्ष प्राप्त किया अककीति स्मितयशको राज्य देकर तप द्वारा मोक्षको प्राप्त हुए । सूर्यवंश और चन्द्रवंशके अनेक राजाओंका समुल्लेख २१६-२१७ अजितनाथ भगवान्‌, सगर चक्रवर्ती, उनके अदृगु आदि साठ हजार पृत्र' और कालक्रमसे होनेवाले सम्भवनाथसे लेकर शीतलरूनाथ तक- के तीर्थंकरोंका समुल्लेख २१७-२१८ २१६




User Reviews

  • Vikash Jain

    at 2020-08-16 06:35:48
    Rated : 10 out of 10 stars.
    "सम्पूर्ण इतिहास"
    भारत का सम्पूर्ण इतिहास इस किताब में है
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