सोहन काव्य कथा मंजरी | Sohan Kavya Katha Manjari

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Book Image : सोहन काव्य कथा मंजरी  - Sohan Kavya Katha Manjari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) अतन्ध स्वप्त से राज ऋद्धि सुख उसने तो गहरा पाया। घुभको भो यह आया किन्तु रोटा गुड़ में ही खोया । अव भी ऐसा स्वप्न लेऊँ मैं राज्य सम्पदा मिल जावे । किया बहुत उपाय तथापि स्वप्न चन्द्र का नहीं आवे। पश्चात्ताप करे अब दिल में चन्द्र स्वप्त कब आवेगा ॥करे।1११॥ वापिस आना बहुत कठिन है किन्तु कभी वह आ जावे। पर तुम समझो प्यारे मित्रों ! वापस नर भव नहीं पावे । इस आत्मा को चन्द्र स्वप्न बत मानव तन यहाँ मिल जावे । सावधान रह करे साध्रना; शिवपुर राजा कहलावे। नहीं ता भिक्षुक के सम सबझो आखिर में पछतावेगा ।करे।। ११॥ गुड़ रोटा सम विषय सुखों में मानव तन पूरा कीना। फिर पछताए क्या होता है समय हाथ से खो दीना । प्राज्ञ' प्रतादे 'सोहन मुनि” कहे धन्य उन्हों का है जीना । भोग त्याग कर योग धर्म में जिसने अपना चित दीना । दो हजार तेवीस चौमासा शहर मयूदा भावेगा ।क्रे।1१३॥।




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