हिन्दी भाषा विकास के आयाम | Hindi Bhasha Vikas Ke Ayam

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Hindi Bhasha Vikas Ke Ayam by आभा त्रिवेदी - Aabha Trivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1४ हुआ है । भ्रत इन तीनी के विभिन्न प्रभाव इस बोली पर पड़े हैं। बागरू नाम की बोली भी इसके क्षेत्र के वीच-बीच मे करनाल और दिल्‍ली के देहात में बाली जाती है । उससे मी इसकी अ्रद्त्तियाँ प्रभावित हुई हैं। सक्षेप में इसकी निजी विशेषताएँ इस प्रकार है-- 1- खड़ी बोली मै क्रिया के रूप हिंदी की ग्रय बोलियो के समान तद्मव होकर प्रोकारात या ग्रोौकारान्त नही होते । विशेषण तथा सभाएँ भी ओका- रान्त या भ्रौकारा-त नही होती । प्राय. एकबचन मे क्रिया (भूत काल मे), संज्ञा एवं विशेषण पश्रादि आकारात रहते हैं । यथा-- घोडो” था घोडी के स्थान पर घोडा भलो या मलौ के भला मारयो या मारी के ” मारा दौड यो या दौडी के / दौडा गयौया गर्मी के. गया 2- साहित्यिक हिंदी मे जहाँ “हे ! और “औ” घ्वनियों का भ्रयोग होता है, वहाँ खडी यो वी में “ए! भोर “झो” हो जाते हैं ॥ यथा--- खैर>खेर पैर-+पेर है हे भ्रोर- भोर कौलचफोल 3-खड़ीबोली (ग्रामीण) मे मूघय ब्यजनों के प्रयोग को भषिकता पाई जाती है। व्यजनो के द्वित्व की प्रवृत्ति भी मिलती है, पर उच्चारण में ही यर प्रद्ृत्ति देखी जाती है, लिखने मे उच्चारण के भ्नुसार ध्वनियों का भवन नहीं करते ! यधा+- पाता च्च्पात्ता चेढा>-बेट्टा रोदी **+ रोट्टी छोटाज- छोटरा 4- प्रो ', ओ' के लिये ' ऊ कर देंने को प्रश्तत्ति भी मिलती है -- मर्दों का वत्मरद्ू का राम का रू राम कू




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