ऋग्वेदभाष्यम् | Rigwedabhashyam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऋग्वेद: मं० - १।,अ० १८ | सू० १५३६ ॥ ९३ बहत व्याप्ति वे (चलार:) ब्राह्मण,क्षत्रिय, वेर्य,शूद्ध वण और ब्रह्मचय गहस्थ वान- प्रस्थ संन्यास ये.चार आश्रम तथा (त्रयः) सेना आदि कार्मो के अधिपत्ति, प्रजालन _ तथा भृत्यलनये तीन (दिश्वः) शिखाने योग्य हों वह राज्य करने को योग्य हो॥१५॥| भावार्थ “++ईसं मंत्र में उपमाल ०--जलिस राज़ा के राज्य में विद्या और अच्छी शिक्ता युक्त गुणं कमे खमाव से नियमयुक्त धर्मात्याज्ञन चारों वर्ण और आश्रम तथा सेना, प्रजो और न्यायाधीश हैं वह सर्य्य के तल्य कीर्ति से अच्छी शोभा पक्त होता है ॥ १५.॥ इस सक्त में राजा प्रला ओर साधारण मनुष्यों के धर्म के वशन से इस - घक्त में कहें हुए अंथ की पिछिले सृक्त के साथ एकता है यह लानना चाहिये।॥ | यह १२४२ एकसों वाईशवां सृक्त और तीसरा वर्ग प्रा हुआ ॥ तल तन जलन ड ल्‍ कल आल ल लललल्‍ हल ल्‍ च ला ..0ह........>-त+त+त+++++_ मा हि क पृथुरित्यस्थ बयोदंशचस्यथ त्रयोवैंशत्युत्तररातंतमस्य- : सूक्तस्य दीघतमसः पुत्र: कन्ञावानूषिः। उषा देवता। : : १ 1-३1.६। ७ 1$ | १० ।॥ १३ विराद चिष्ठप्‌ २१४।८ ॥ १३२ ॥ निचृत्न्रिष्ठ॒प्‌ ५ त्रिष्ठप्‌ च छन्दः | पेवतः स्व॒रः .. ११ भुरिक्‌ पंड्डक्तेश्छन्दः । पशञश्चमः स्वरः ॥ ख्रथ दम्पत्योविषयमाह ॥ अब एकंसी तेइ्शंवे १२३ सक्त का आरम्भ हैं उस के प्रथम मत्र में त्री पंरुषे के विषय को कहते है ॥ ह एथ रथो देज्षिणाया अयोज्येन देवासों अम्ठतासों अस्थः। ऋरप्णाददस्थादयां 3 विंहायादचर्कित्सन्ता मानंषाय कज्षयाय ॥ १ ॥ . $ आफ र_ ट_ _ जल डटिफंनह/ैकघ +पः




User Reviews

  • धर्मरक्षक-Dharmrakshak

    at 2021-07-02 21:37:09
    Rated : 10 out of 10 stars.
    इसमें भी प्रथम मण्डल है मंडल 8,9,10 उपलब्ध कराए https://archive.org/details/rigved-mandal-1-final_202105/%E0%A4%8B%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6_%E0%A4%AE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%B2_8/page/n3/mode/2up
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