उर्वशी का सामाजिक संदर्भ | Urvashi Ka Samajik Sandarbh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उवश्ञी का आधुनिक परिप्रेक्ष्य 25
महिमा पर रीक कर तडपते रहते हैं। ०5
दूसरी ओर पुरुएवा अत्पत ही सुसस्कृत व्यक्ति है। वह नारी को मात्र उप-
भोग की वस्तु नही समझता है या उस पर अपना जमसिद्ध अधिकार नहीं
मानता। उवश्ञी जब स्वगलोक से भूलोक पर उसके प्रणय मे बधी चली आती है,
तब वह कतज्ञता ज्ञापन करते हुए कहता है ” चिरद्व्तज्ञ हु इस हृपालुता के हिंत ।”
कितु इतना निश्चित है कि पुरुरवा सक्रमण की प्रत्रिया से गुजरता हुआ
द्िघाग्रस्त व्यक्ति है। आधुनिक युग मे जीवन विषयक परम्परागत घारणा दूट
रही है और नवीन धारणा बनने के कोई चिह्न मज़र नही आ रहे हैं। दोनो तरफ
से हमारा सामाजिक जीवन दब रहा है। परिणामत इस समाज मे ऐसा व्यक्ति
उभरने लगा है, जिसवी सवेदनक्षमता ही जैसे खो गई हो, उसे जैसे अपने आस-
पास की काई घटना स्पद्य ही नही कर रही हो । इस सवेदनशु यता के फलस्वरूप
भाज के मानव या न प्रेम ही इतना उद्दाम रह गया है और न विरह ही इतना
गहने कि कसी कवि को 'भेघदूत” रचने के लिए प्रेरित कर सके । पुरुरवा उवश्ी
से प्रेम करता है, कितु उसे प्राप्त करने का प्रयास तक नहीं करता (केवल
बहानेबाजी करता है) । उवशी स्वय उसके पास आयी है। वह तो इसी प्रतीक्षा
मे बठा रहा कि उसके हृदय वी पीडा जब उब्ली के मन को उद्वेलित कर दंगी,
तब वह स्वय ही उसवे' पास चली आयेगी ।
“इसीलिये, असहाय, तडपता बैठा रहा महल मे,
लेकर यह विश्वास, प्रीति मेरी यदि मृषा नही है,
तो भेरे मन का दाह व्योम के मीचे नही रुकेगा,
जलद-पुज को भेद, पहुचवर पारिजात के वन मे
चह अवश्य ही कर देगा सतप्त तुम्हारे मन को ।
और प्रीति जगने पर तुम वैवुण्ड-लोक को तज कर
किसी रात निश्चय, भूतल पर स्वय चली आओगी 5९
जबी के स्वग लौठ जाने पर भी वह स्वग से लोहा लेने वा आत्रोश तो व्यक्त
करता है, कितु उसे क्रिया|वित नही करता
“लाओ मेरा धनुप, सजाओ गगन जयी स्यादन का
सा नही, वन शत्रु स्वग-युर मुझे आज जाना है।
सौर लिसाना है, दाहकता विसकी अधिक प्रवल है,
भरत शाप मी या पुरुरवा ये प्रघड बाधा की [४7
उस्तुन आज व॑ मनुष्य या बमपक्ष निस्तेज हो गया है 1 आज का मनुष्य चितन
में सम्दो-सम्बी बात तो बरता है, पर घम भे वदायित हो बको प्रवृत्त होता है।
आज के मनुष्य का सपप अधिक दा्ननिव और एवेडमिय होता है। ४8
अन्त से पुररवा अपने अन्तमत वी आवाज सुन सायास के सिए प्रस्पान
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