कहीं भी खत्म कविता नहीं होती | Kahin Bhi Khatm Kavita Nahin Hoti

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Kahin Bhi Khatm Kavita Nahin Hoti by नरेन्द्र मोहन - Narendra Mohan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यही भी खत्म बपिता ही होती 27 अमृता भारती वी तम्बी बविता--'भआज या वल या सौ बरस बाद' से ववितक और सामाजिक राजनीतिक सदर्भों का अतगु फ्न और टकरावपूर्ण विधान हुआ है। इस कविता में सघप और विद्रोह वी वयवितिक परिकल्पना से जुडी सामाजिक परियतन की वाछा और उसके अतविरोध भ्रकक्‍्ट हुए है। स्थितिया कै जो विवरण बवयित्री ने यहा दिए हैं, वे वाह्य ससार को ही नहीं, एवं जटिल और उलसझे हुए अतरग ससार का भी उदघाटित करते हैं और उन दोना ससारो म तालमंल स्थापित करा का भी प्रयल करते है। ये विवरण तनाव की उत्बटता से विशाशति दिलाकर वाव्यगत तनाव को सघन और संतुलित भी करते है । इस कविता मे वैयक्तित प्रसगा से क्वयित्ी मन पर छायी हुई करुणा व्यापक मानवीय चेतना के साथ जुड गयी है पत्थर वी तरह बधी हुई करुणा,” क्वयित्री जानती है कि बहुत बडा वीझ है पर उसे यह भी एहसास है वि यह वीझ तब तब मेरे पे तोडता रहगा/जव तक|मिट॒टी म धस मेरे पैर/पृथ्वी के एवं बडे हिस्से पे! साथ ऊपर नही उठते ।' ये पक्तिया निरी आवाक्षा या बडबोली जभि- व्यक्ति मात नही हैं। ये कवर्ित्री के सवेदनात्मर भाव (सक्त्प भी) वा प्रति फलितत करती हैं। [यहा जनुभव का तात्वालिक और वैयक्तिक सदभ सामाजिव सदभ म घुल गया है. ('जलना/ओर कसी को जलते हुए देखना/इन दोना वी आच/पता नही कव बरावर हो गयी । सवेदनात्मक स्तरा पर चलन वाला यह्‌ अनुचितन मानवीय आशयो वी गहराने वाला है। लीलाधर जगूडी ने कई लम्बी कविताएँ लिखी है पर 'वलदेव खटिक वे' अलावा अय कोई कविता विशेष प्रभावित नही कर पाती | उन कविताओं मे कवि के लिए उत्तेजना और तनाव मे तमीज करना मुश्किल हो गया है। युक्तियों भर बेडब्ोले का-य भुहावरे के कारण 'नाटव' जारी है! एक जसफ्ल लम्बी कविता वन कर रह गयी है। पर 'बलदेव खटिक! एक विशिष्ट लम्बी कविता है । इसमे ने विसी आप्यान वा सहारा लिया गया है, न कसी फैंटेसी था बिम्ब वा । इसके! बेद्र म एवं ऐसा विचार है जो एक ऋूर समवालीन स्थिति को धीरे घीरे उधाडता है आर उसे सघप चेतना स॑ सम्बद्ध कर देता है। सवाल स्थिति वो शब्दबद्ध करने वा उतता नहीं है जितना यह कि इस वक्‍त वहा से लाय जाय ऐसे शाद/जो हतफनामा वन सके / जो तरफ्टारी कर सके ।” इसके लिए क्विन रगतू और वलदेव खटिव जैसे ठोस और वास्तविक चरित्रा वी सक्नषिय सामाजिक सत्ताओ को उभासा है | दरअसल, ये चरित्र पही, प्रतिरोध क॑ विचारा वे साथ जुडी हुई विसगतियो और त्रासद अनुभवों के बाद लिये जाने वाले निणयो के मूत रूप है। 'सवालो के जत्यों से भरा हुआ अकेला आदमी (रगतू) अगर एक मानवीय दुघटना है तो सिपाही बलदेव खटिक की




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