कहीं भी ख़त्म कविता नहीं होती | Kahi Bhi Khatam Kavita Nahi Hoti

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Kahi Bhi Khatam Kavita Nahi Hoti by नरेन्द्र मोहन - Narendra Mohan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहीं भी खत्म कविता नही होती 15 को किसी बड़े आकार में या लम्बे रचना-विधान मे दराबर बनाएं रखना सभव नही है ।' यहा पो छोटी कविता या प्रगीत के तनाव सवधो प्रतिमान को लम्बी कविता कै विधान पर लाद रदे ह 1 तनाव सवघो जो धारणा पोकेमनमेदै वहं प्रगीत या दोदी कविताओं पर धृत है ¦ पो जिस तनाव क वात कहते है वह एक मनोदशा तक सीमित रह जाने वाला तनाव है। विभिन्‍न मनोदशाओ वा बोध जगाने वाले तनाव की प्रकृति छोटी कविता की तनाव सवधी धारणा से भिन्न होगी ही। पो की इस धारणा का कि कोई भी लम्दी रचना सर्देव समान रूप से तनाव की तीब्रता को कायम नही रख सकती, का खडन टी० एस० इलियट ने अपने एक निवन्ध में यह कहकर किया है कि लम्बी कविता मे तनाव ओर विश्वान्ति वी क्रिया 'मूवमेट आफ टेंसन एण्ड रिलाक्सेशव* रहती है 1 मैंने अन्यत्र इस सदध में लिखा भी है कि लम्बी कविता के सरचनात्मक विकासक्रम मे एक तनावपूर्ण अश या परिच्छेद के बाद निहायव सीघा-सादा, सपाट, गद्यात्मक अश या परिच्छेद भी रह सकता है जो पूर्ववर्ती दनाव दशा के परिप्रेषय मे या समग्र कविता के सदर में सार्थक हो (° लम्दी कविता मे इस तरह के सरचनात्मक सतुलन को साधना बोर कायम रखना ज़रूरी है। इलियट ने 'द वाइडेस्ट पासिबिल वेरीएशज़ ऑफ इरटेंसिटी'* बी ओर सकेत करके लम्दी कविता मे उपस्थित तनाव के विविध रूपों मोर स्तरों के सजनात्मक उपयोग वी ओर ध्यान आकृष्ट किया है। सर्जनात्मक तनाव के इन विविध रूपौ भौर स्तरो को वास्तविक स्थितियों के सदर्भ मे रखना भौर उनके दयाव को क्षेलना श्षस्बी कविता की रचना प्रक्रिया की अनिवार्य शते है । सर्जेनात्मक तनाव वी बनावट ओर प्रकृति को समझता भी बहुत जरूरी है। इस तनाव के पीछे भावना है या विचार, अनुभव ই ঘা নিন যা अनुभव ओर विवार की सश्लिष्ट प्रवृत्तियह जानना जरूरी है। केवल भाव स्फूतं तनाव कविता को लम्बाई में फैल। जरूर सकता है, उसे लम्बी कविता नहीं बना सकता। हां 1 जाई होहद दैट ए शांग पोयम ड नाट एरिडस्ट1 माई मेनटेन देट रि फरेड १९ साग पोयमः ड तिम्यसो ए पररैट कटरा डिकान इस टर्मेज” 'देट डिग्री आफ एक्साइटबेंट दिच बुढ इनटाइ- হল ए पोयम टु बी सो बाह्ड एट बाल क्ैन नाट दो सेसटेंड घू आउट ए कम्पोजिशन आफ एनी हट बेंच । तिप वानं रित (घ०) दी पोटेगम पो, (दी दाईकिय प्रेस, 1 ०45),१्‌* 568 2 दी एत एनिवट चरोड एष्ड सं , वेप मूड, घख्या 22 (शरन 1921 } पृण 3 नरेद्र मोहन सम्ब বিরান क रचना-दि्ान, पृण ॥ 4 टी दसम दतियट दूक्रिटिसाइज दि क्रिटिक एड अदर ऐस्सेज (केबर एड केंदर, लदन 1965) पृष्ठ० 34




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