इलाज | Ilaj

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Ilaj by शम्भूरत्न मिश्र - Shambhu Ratn Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाश की खोम श्ह और बादर का घवा अधकार ? विमज्ञी को दृजकों यत्तियों के नीचे वह प्रकाश सैसे कद रहा या-- मैं --झुरे को । में सो तुग्दारे ही अन्दर हूँ ।” ऊ का तिमन्न ने खिड़की खोल दी ! खूद-खूब बुख़ार चढ़ आया था उसे । भारी प्यास लगी यो, भांचे उत्तर कर, मम भर कर ठयडा पानी पा जिया था उसने । तमी दवा के एक सके से कमरे में जलता दीपक शुरू गया। गहरा अँधेरा फैल गया था यद्दाँ ॥ कौर निमत्ञ की भाँसों में वह अंधेरा था, जिसमें दो नारियों का शनेद भंपना मत शरीर गाढ़ गया था ! + शेश्या जैसे ऑँलों में भाई हो, भौर घद केस ! निर्मल ने पुकारा--रिखा ।” ध्वनि टकरा कर लौट आई। जैसे घद पायल हो, चारपाई से उठा, याहर के अन्धकार का जैसे घद्द पता जगा सेगा आम । भाखििर क्यों यह अंधेरा मन को थेर॑ है ) भौर मौत ? भौत स्पा है? क्या अँघेरा दी तो मौत बन कर नहीं भाता ?ै निर्मल दरवाज़ा खोल कर थाहर सड़क पर आ गया था। जो भ्रकांश उसके मन से रैखा धीन जे गई थी, उसे खोजने पद दौड़ा चला जा रद्दा था । पानी यरस्तने-यरसने को था । यादक्त खूब बिर भाये थे। घना अघेरां छा गया था--टीक वैसा ही, जैसा निर्मत्ष के मन में था । उस सघन और गइन बढ़ती हुई अ्रंधियाही में निमक्ष ज्ञि-द्गी का प्रकाश खोजने निकल पड़ा ! कौन जाने, ढस भरकाश को खोज उसने कर क्षी है झब तक अथवा नहीं 1




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