रोली | Roli

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Roli by श्री शिवसिंह 'सरोज' - Shri Shivasingh 'Saroj'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उन अबलाओं फी चअदहों में फिर उमड़ अशेष अतीत चलो। उन गाँवों में, उन गोंठों में फवि अपने गाते भीत चल्ों। अखबार, रेडियो, यक्न्‍्तत्र या ज्िनयों कुछ भ्री ज्ञान नहीं। 1 युग-जागूति क्या ? जिनको पिछले पणछवारों की पदचान नहीं। रमई मतई का व्याद-भोज, ईैंगई रहीम का र्वथाग सफर , जिनकी च्चों फे विषय ओर ; दुनिया घी उनसो कौन खबर ? कलुशआ) वइसिंपा, बुद्धि-दीन दी बघेल बने जिनके सहचर जिनको अनिष्ट ही इष्टदेव, यो! जमींदार दी जगदीश्वर $ उन उभरे सिट्टी फे ढेलों से जोड जगत पी भीति चलो। उन गाँयों में, उन गोंठों में कधि अपने गाते ग्रीत चलो। हो गई सुबह नन्‍हीं मुखिया कुटिया के ट्ट्टर खोल चलो , अस्मा | बसी दे। भूस लगी शरोकर यह मुद्द से बोल 'चली। नो




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