घोर तपस्वी कर्नाटक गजकेसरी श्री गणेशलालजी म॰ सा॰ का जीवन चारित्र | Ghor Tapasvi Karnatak Gajakesari Shri Ganeshalalji M. S. Ka Jivan Charitr

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shri Ganesh lal ji M. Sa. Ka Jeevan Charitra by मानकंवर जी महामती - Mankanwar ji Mahmati

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प्रभाकुँवर जी - Prabhakunvar Ji

Add Infomation AboutPrabhakunvar Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
एक्कीस जीवनी यपूर्ण पढनेसे पाठक्नोको भलीभाँती ज्ञात हो जाएगा कि ' जिसमें गुरुदेवके जन्मसे अततक सभी विपयोपर लेखिका महासतिजीने पूर्ण रूपसे प्रकाश डाला है। किसीभी व्यक्तीका जीवन-चरित्र पढ़ते समय मन एक्राग्न नही रहता। छेकिन विद्वान लेखिकाने सरल, सुगम असादगण युक्‍तत शैलीसे जीवन-चरित्र लिखा है कि पढनेवाला अपन्यास सरिखा पढतेहि जाता है। उपमा अलकारो के वर्ग र एखादहि पन्ना खाली जाता होगा । जगह जगह योग्य सस्कृत तथा भग्रेजी कहावते देकर अुस विपयको अधिक प्रभावित और स्पष्ट किया है, यह लेखिका महा- सतिजीकी लेक विशेषता है। और यह स्वाभाविक है। जब लेखिकाजीके गृरुणिजी हि जैसे है तव लेखिका महासतिजी भैंसे क्यो न हो? क्योकि गुरुणिजीकि सुशिष्या ! हिरोकि खदानमेंसे हिरेहि मिकलेगे। आमके पेडको स्वादिष्ट आमहि छगेंगे । चद्रसे शीतल किरणेहि निकलेगी । जैसे वेदनीय महासतिजी गुरुणिजीके अैसीहि सुशिप्या होगी। जैसे विद्वान भ्रभावी छेल्विकाके हाथसे बसे महापुरुपकी जीवन-कहानी लिखी गयी जिसके लिये प्राककथन या प्रस्तावना लिखनेके लिये अतनेहि योग्यताका विद्वान लेखक चाहिए था। में न तो लेखक हैँ और न घमंतत्ववेत्ता ! लेकिन यह जीवनी जिसी ग्राममें पूर्ण छिखी गयी । जिसलिये परू० गुरुणि- जीने मुझे आदेश दिया कि मे प्रस्तावना लिखूँ । इसिलिये यह लिखनेका ” थेये क्रिया है। मालूम नही जिसमें कितनी तुटियाँ होगी । अतमे - ग1ए6४ ती॑ 7९४६४ खाद्या भी जल्याएते ७5, भर लव प्राबध८८ 00 1ए८४ 8701177९ &णपे पल्जषापण्ड, 1९४ए2 फैल्शात एन, 8001-४8 61 ८ इ्च708 एा 16 - 1.०गए #९1०छ- इसलिये महापुरुपोके जीवन-चरित्र छिखे जाते हे । सेवाल पिपरी (विदर्भ) ! बिनीत, दिनाक ७॥१०६२ चदनमल सोनी आन छ न




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now