जैन शिलालेख संग्रह भाग 3 | Jaina Silalekhasangraha Bhag 3

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Jaina Silalekhasangraha Bhag 3  by पंडित विजयमूर्ति - Pandit Vijaymoorti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ल्श्श ६८ ऐसे ही एक तोरण के अंशपर से लिया गया है| इस तोरण पर एक नग्न साधुचिंत्रित है जितकी कलाई पर एक खरंड वस््र लथ्का हुआ* है | ... ४. यहाँ से सैकड़ों जैन तीथंकरों एवं यक्ष-यक्तिरियों की मूर्तियाँ मिली हैं | ये मूर्तियाँ बड़े सादे ढंग! से बनाई गई हैं। तीथंकरों की: मृ्तियाँ खज्भासन एवं पंद्मासन दोनों प्रकार की. मिली हैं | प्रारम्भिक शताब्दियों की -सतियाँ नग्न हैं। इनमें अधिकांश मूर्तियाँ आदिनाथ, अजितनाथ, सुपाश्व॑नाथ, शान्तिनाथ, अरिश्तेमि- और वर्धमान “ की मिली हैं । उस काल में तीथकर के चिंन्हों-लॉज्छुनों-का आविष्कार न होंने के कारण. मूर्तियों में प्राय: एक .दूसरे से भेद नहीं. है | हाँ, आदिनाथ के केश (-जाएँ,.) तथा पाश्व और सुप्रा्र्व के सर्पफण इनको पहचानने में सहायता देते हैं। जैन तीथकरों' की मूर्तियाँ नग्न द्ोने के कारण, वक्स्थल पर श्रीव॒त्स चिन्ह होने से ओर शिर पर उष्णीष न होने कारण इस काल की बौद्ध मर्तियों से अलग श्रासानी से पहचांनी जा सकती हैं। . « “ मथुरा से इसी समय की चौमुखी मूर्तयाँ मिली हैं जो सर्वतोभंद्रिका प्रतिमा अर्थात्‌ वह शुभ मूर्ति जो चारों ओर से देखी जा सके, कहलाती थीं | इन प्रति- माश्रों में चारों ओर एक तीथकर. की मूर्ति बनी होती है। चौमुखी मर्तियों में आदिनाथ, महावीर और सुपाश्वनाथ अवश्य होते हैं। ऐसी मूत्तियाँ - कुषांग . और गुप्त काल में बहुतरायत से बनती थीं। ईश्वी सन्‌ ४७४, के लगभग उत्तर _आरत पर हूणों के भयानक आक्रमणों से मथुरा के स्थापत्य को बड़ा धक्का लगा। अतः ईस्वी ६वीं के पश्चात्‌ मथुरा से जो नमृने हमें मिले हैं वे भोड़े और ..मद्दे हैं।. उनमें पहले की सी सजीवता नहीं है । इसी काल. के लगमगः बिना. ... क्राड़ेवाली मूर्तियों में कपड़े. दिखाये. बाने . लगे,, और सर्वप्रथम राजतिंहासन _ यक्ष यक्तिणी, तरिछत्न एवं गजेन्द्र आदि प्रदर्शित होने लगे जो उत्तर गुप्तकाल आर उसके बाद की जेन मूर्तियों के विशेष लक्षण हैं| इन्हीं के साथ मध्यकाल में मथुरा के शिल्पियों ने यक्ष यक्षिणियों ओर जेन मातृकाओं की भी प्रथक १---बाबू कामताप्रसाद जैन इसे जैनों के अर्धफालकसग्प्रदाय से संबंधित बताते हैं, देखो जैन सि० भास्कर भाग ८ अंक २ पृष्ठ ६३-६६




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