जैन शिला लेख संग्रह भाग 4 | Jain Shila Lekh Sangrah भाग 4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
568
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अस्ताचना 1७५
(ड) साधुर सघ--इसका उल्लेस सन् ११७० के एक छेखमें
(क्र० २६५) है । इस संघके महामुनि गुणभद्ग -टारा इस छेखकी रचना को
गयी थी रा छेसमें छोलक श्रेप्ठो-द्वारा पास्वनाथमन्दिरके निर्माणका
बर्णन है ।
(ऊ) परचस्तूप निकाय--अ्रस्तुत सग्रहके एक लेख (क्र० १९ ) में
काशीके पचस्तुप निकायके आचार्य गुहनन्दिका वर्णन हैं। इनके शिष्योके
लिए वटगोहालो ग्राममें एक विहार था जिसे ब्राह्मण नाथशर्माने सन्
४७९ में कुछ दान दिया था ।*
(क्र) जम्बूख॒ण्द्गण--इसका उल्लेग छठी-सातवी सदीके एक
छेखमें ( क्र० २२ ) हुआ हैं। इसके आचार्य आर्यणन्दिको सेन्द्रक राजा
इन्द्रणन्दने कुछ दान दिया था ।
(कर) विहवूर गण---इसका एक छेसत (क्र० ५६ ) मिला है । इसमे
सन् ८६० में सन्नाद् अमोधवर्प-ढारा इस गणके नागनन्दि आचार्यकों कुछ
दान दिये जानेका वर्णन है ।*
(छू) जैन सघऊे विपयमें साधारण विचार--अब तक जैन मुनियोके
विभिन्न नधोका जो परिचप्र दिवा गया हूँ उससे स्पष्ट है कि इनमे व्यवहार-
१. साथुर सघ चादम व्यप्ठासघका पुक गच्छ बन गया था। इसका
चिस्तृत चच्तान्त हमने 'मद्दारक सम्प्रदाय! में दिया हैं ।
२ धघवकादीकाके कर्ता धीरसेन आचाये पचस्तूप अन्चयके हो थे (घवला-
प्रशस्ति) । किन्तु उनके प्रशिष्य गुणमद्द उन्हे सेनान्वयका कहते
है। हो सकता हैं कि पंचस्तूपान्वयकों ही थादमे सेनान्वय नाम
प्राप्त हुआ दो । किन्तु सेनानवय सन् ७८० के रूगमग अस्तित्वमें
झा चुका था यह पहले स्पष्ट कर छुके हैं ।
३. जम्बूसण्ड गण तथा सिंहचूर गणका चणन पहले संग्रहमें नही है ।
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