प्रमा प्रमेय | Prama Pramey

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Prama Pramey  by विद्याधर जोहरापुरकर- Vidyadhar Joharapurkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२) दिया है तथा अन्तिम पुष्पिका में इसे सिद्धान्तसार मोक्षश।क्ष का प्रमाण- লিক नामक पहला परिच्छेद बत॑खाया दै । इन में से हम ने पहला नाम ही शीरषक के लिए उपयुक्त समझा है क्‍यों कि एक तो, उस का उल्लेख ` ङे हुमा है, दूसरे, वह ग्रन्थ के विषय के अनुरूप है तथा प्रन्यसूचियों में भी वही उल्लिखित है। ग्रन्थकर्ता द्वारा उल्छिखित दूसरे नाम के सिद्धान्तसार सथा मोक्षशाल््र ये दोनों अंश दूसरे प्रन्थों के लिए प्रयुक्त हेति आये हैं - जिनचर्न्दक्त सिद्धान्तसार माणिकचरद्र ग्रन्थमाला में प्रकाशित हो चुका है सथा नरेन्धसेनकृत सिद्धान्तस्ारसंप्रह इसी जीवराज ग्रन्थमाला में प्रकाशित हुआ है - अतः इस नाम को हम ने गीण स्थान दिया है। उस नाम से ग्रन्थ के विषय का बोध भी नहीं होता । ४. .विश्वतन्तप्रकाश्च तथा प्रमाप्रमेय---यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि प्रमाध्रमेय को ग्रन्थकार ने सिद्धान्तसार-मोक्षशाल्न का प्रमाण- निरूपण नामक पहला परिच्छेद बताया है, इस से अनुमान होता टै फि इस म्रन्थ का भगला परिच्छेद प्रमेयो के बारेमे होगा। इसी प्रकार विश्व- -तत्वप्रकाश-मोक्षशचाछ्र के पठे परिच्छेद के अन्त में आचार्य ने उसे अशेष- परमतबिचार यह नाम दिया हैं, इस से अनुमान होता है कि उस के दूसरे परिच्छेद में स्वमत का समर्थन होगा। दुर्भाग्य से इन दोनों भ्रन्थों के ये उत्तरार्थ प्राम नही हैं । एकतरह से ये दोनों पूर्वाध एक-दूसरे के प्रक हैं क्‍यों कि इस प्रमाममेय में प्रमाणों का विचार है तथा बिश्वतत्तप्रकाश में प्रमेयो का विचार है। ५. प्रमाप्रमेय तथा कथाविचार--म्रन्धकतौ ने. विश्वतत्तप्रकाशच में तीन स्थानों पर कथाविचार नाम का उल्लेख करते हुए सूचित किया है कि उस में अनुमानसंबंधी विविध विषयोंकी चर्चा है। वे प्रायः सब विषय इस प्रमाप्रमेय में वर्णित हैँ। तथा इस के परिच्छेद १०१ से १२९ तक विशेष खूप से कथा (वादके प्रको) कां ही विचार किया गया है। अतः सन्देह होता है. कि आचर्य ने इसी अंश का विश्वप्रकाश में उल्लेख किया होगा। किन्तु यह भी संभव है कि इस विषय पर उन्हों ने




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