पुरुषार्थ प्रकाश | Purusharth Prakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥£ अह्यचय्ये अ्करणम् #£ प्र
श्वेतकेतुहार॒ंगेय आस त»ह पितोवाच श्वेत-
केतोबस व्रह्मचय्ये न वै सोम्याउस्मत्कुलीनोड्ननूच्य
व्रह्मबन्धुरिव भवतीति ॥।
ला० प्र० ६ खं०९
उद्दालक ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतु को उपदेश करते
हैं, कि हे श्वेत्तफेतु | तू ऋह्मचय्य को धारण कर, क्योंकि
ब्रह्मचय्य के सेवन न करने से; मनुष्य वर्णंसंकर द्वोजाता
हैं, और हमारे कुल में आज दिन तक कोई भी ऐसा नहीं
हुआ, कि जिसने त्रह्मचय्ये ब्रत पालन न किया हो, इस-
लिये तू त्रह्मचय्ये को धारण कर। इसी प्रकार प्राचीन
ऋषि महूपि यज्ञ और इष्ट इत्यादिक भी बक्मचय्य को
हो मानते थे जैसे:--
अथ यघ्चज्ञ इत्याचक्षेत ब्रह्मच्यमेव+# तहूब हस-
चर्येण हं व यो ज्ञाता त॑ विन्दतेज्य यदिष्ठटमित्याचक्षते
ब्रह्मचस्यमेव तहवूह्मचर्य्येण ब्ववेप्ट्वात्मानमनु
न्दते ॥ १ ॥ अथ यत्सत्रायणमित्याचक्षते वृह्म-
चर्यमेव तडह्मचर्येएञ व सत आत्मनस्त्राणं विन्द-
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४ एवं पृथकाल में तीर्थ 'भो ब्रह्मचय्ने को ही सानते थे, देखो.
वृद्धमौतमस्य्ति--बह्ायच्य्य परं तीर्थ त्रेताग्निस्तीथैसुच्यते । सूल-
धर्मःस विज्ेयों मनस्तत्रैव वा युतस् ॥ चुद्धयौत्तमस्म्ति आ० २०॥
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