पुरुषार्थ प्रकाश | Purusharth Prakash

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Purusharth Prakash by नित्यानन्द जी महाराज - Nityanand Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥£ अह्यचय्ये अ्करणम्‌ #£ प्र श्वेतकेतुहार॒ंगेय आस त»ह पितोवाच श्वेत- केतोबस व्रह्मचय्ये न वै सोम्याउस्मत्कुलीनोड्ननूच्य व्रह्मबन्धुरिव भवतीति ॥। ला० प्र० ६ खं०९ उद्दालक ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतु को उपदेश करते हैं, कि हे श्वेत्तफेतु | तू ऋह्मचय्य को धारण कर, क्योंकि ब्रह्मचय्य के सेवन न करने से; मनुष्य वर्णंसंकर द्वोजाता हैं, और हमारे कुल में आज दिन तक कोई भी ऐसा नहीं हुआ, कि जिसने त्रह्मचय्ये ब्रत पालन न किया हो, इस- लिये तू त्रह्मचय्ये को धारण कर। इसी प्रकार प्राचीन ऋषि महूपि यज्ञ और इष्ट इत्यादिक भी बक्मचय्य को हो मानते थे जैसे:-- अथ यघ्चज्ञ इत्याचक्षेत ब्रह्मच्यमेव+# तहूब हस- चर्येण हं व यो ज्ञाता त॑ विन्दतेज्य यदिष्ठटमित्याचक्षते ब्रह्मचस्यमेव तहवूह्मचर्य्येण ब्ववेप्ट्वात्मानमनु न्दते ॥ १ ॥ अथ यत्सत्रायणमित्याचक्षते वृह्म- चर्यमेव तडह्मचर्येएञ व सत आत्मनस्त्राणं विन्द- कक 3. 2325७ #5 ४०% 3० 3# से 2९ ४4७/४५/...#१5४५, ४ एवं पृथकाल में तीर्थ 'भो ब्रह्मचय्ने को ही सानते थे, देखो. वृद्धमौतमस्य्ति--बह्ायच्य्य परं तीर्थ त्रेताग्निस्तीथैसुच्यते । सूल- धर्मःस विज्ेयों मनस्तत्रैव वा युतस्‌ ॥ चुद्धयौत्तमस्म्ति आ० २०॥ स््ट्म्‌




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