मानसवधू मौलिक कहानियाँ | Mansa Vadhu Maulik Kahaniyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामकृष्ण शर्मा - Ramakrishn Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मानस-वधू २५
धर में घुसे, तो देखा सन्नाठा-सा छाया हुप्रा है । एक पोडशी बाना जिसने
गोरे दरीर पर नीले रग वी साडी पहन रखी थी, भाई। दूट से ही दोडकर उसने
शिश्वु की गोद मे उठा लिया भौर उसके ऊपर घुम्बनों की बोछार शुद्ध कर दी ।
मैं केवल देखता ही रहा! उसकी झांखों में हूप मिथित भश्रुकण विसाई देते थे ।
हप व विपांद का कितना सुदर मिलन था! बच्चे ने महा--दीदो, ये बाबूजी
मुझे काशी से लाए हैं। मै समझ गया कि यह इसकी बडो बहिस है।
मैंने कह्दा--देवी जी, भब मुझे भाभा दोजिए, मैं जाता हू 1 “जी नही, प्राप
अभी नदी जा सकते । मैं भोजन बना रही हू, भाप कुछ जल पान करके ही जा
सकते हैं ।”मह १हु कर वह रसोई मे ची गई। बच्चे ने मुझे एक धीती लाकर दी
पोर मुझे कुएं के पास ले गया थो उह्दीं के धर म था 1 प्रमी तक मैं उसके प्रकैले
होने के शाइचय मे था ।
जय मैं भोजन करने बंठा तो पूछा, धर के मोर सोग कहां गए हैं ? तब उसने
झपनी राम-कहानी सूनाई 1
बोली,'मेरे पिता जी यहा के सम्मानित व्यक्ति थे जो भाज से बीत दिन हसे
डाकुझो द्वारा मारे गए1। डाकू माल का पता चाहते थे, उहोंने प्राण त्याग फर
दिया पर माल न बताया, वही दद्षा मेरी मां की हुई । जो कुछ पल्ले पढा उसे
और बच्चे को उठा कर ले गए । मैं उस दिम यहा धहीं थी। मलीगढ़ में श्रपने
मामा के साथ रहती थी, वही पढ़ती थी। घटना के भगले दित भपने मामा फे
साथ पहा भाई थी, इस बच्चे के गुम होने की बात में प्रखबार मे विवलवा चुकी
हूं। पाघ सौ रुपये पुरस्कार भी नियत है शायद तुमने पढा भी द्वो ।” मैंने
सकारात्मक प्विर हिला दिया।
फिर कहने लगी, भाभा जी उसी दिन से यहीं हैं। वे गेहू को कटवा रहे हैं। में
वास्तविकता से बहुत दुर हूं । हो सकता है कि गलत हू, लगता है किः इस छाके
में सामा जो का भी कोई हाथ हो । रिश्तेदार सब भूखे भेडिये हैं। मुझे तो ऐसा
जाने पड़ता है, कि, जैस “भपता' शब्द किसी स्वार्यी जगत को उत्पत्ति हो। इन
घ्वजना भोड भूसे भेडिया के सावथिस्थल मे पी हुई मैं भ्पने भावी जीवम की
भपानक कल्पना कर रही हू । दुरूदूर तक कोई सहायक नही, जो ये ये छोड
गए ।
यहू कह कर वह रोने लगी। मुझे लगा जैसे जीवन की गति यहा योडी देर हे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...