अहिंसा और उसके विचारक | Ahinsa Aur Usake Vicharak

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Ahinsa Aur Usake Vicharak by मुनि नथमल - Muni Nathmal

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मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अहिसाका अर्थ अर्द्सिका शब्दामुसारी अर्थ दै-दिंसान फरमा। “न+ हिंसा” इन दो शत्देसे अ्दिसा शब्द बना है। इसके पारिभाषिक अश मिपेधात्मक एवं विध्यात्मक दोने है । रागद्गपात्मक प्रशृत्ति से करना, प्राण वध ने करना या प्रवुत्तिमातकता निरोध फ्रना निपेधात्मक अद्दिसा है, सत्त प्रवृत्ति करना, स्थाध्याय, अध्यात्म- सेवा, उपदेश, ज्ञान चर्चा आादि आदि आात्मद्वितकारी क्रिया करना विध्यात्मक अ्दिंसा है। सयमोके द्वारा अशक्‍्ध कोटिफा प्राण वध द्वी जाता है, बह भी निपेधात्मऊ अद्विंसा ह याना दिंसा नहां दै। निपेधात्मक भद्दिसामे केवल ट्विंसाका वजन होता है, विध्यात्मक अद्दिसाम सत्कियात्मक सत्र्यता द्वोती है। यह स्थूल नष्टिका निणय है। गद्दराइम पहुचोे पर बात कुछ और है, निपेषम प्रवृत्ति और ग्रवृत्तिम निषेध द्वाता दवा है। निपेघात्मक आर्दिसाम सत्यृत्ति और सत्पयृत्त्यात्मर अ्दिसाम दिसोंका निषेध द्वोता है। हिंसा न करनेवाला यदि आम्तरिक प्रवृत्तियोंक




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