भोर की किरणें | Bhor Ki Kiranen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तर
“पर में भूल करती हूं,” वह सहयधा चिल्ला उठो । हवा तो टित्रियों भौर
बृद्धों के साथ घर में रहता पसन्द करता है जब कि शेप दल वाले मसय का
शिकार करते हैं | हया घिकार नहीं करता 1”
हथा ज्ञाल हो उठा । शक्ति तथा देह से वह कायर नहीं था । उस जमाने
में कायर पंदा हो ही नहीं सकते थे। उतने रुझाता कद माुल का हाथ कस
कर पकड़ लिया ।
“हपा तु्के दिखला देगा कि वह कामर नहीं है,” वह गरजा। “वह तुझे
अपने साथ पकड़ कर ले जायगा श्रौर श्रू, तानू, काकू किसो को परवा नहीं
करेगा। यदि वे तुझे मुझ से छुड़ाने के लिये भायंगे तो में उन सबको मार
डालूंगा ।!”
कहते कहते उसने मातुल को मरने के उम्र पार वाले जंगल की श्रोर
खींचना प्रारम्म किया । वह जंगल सागर भौर पहाड़ से प्रलदर को प्लोर चता
गया था । मानुल ने उसके पंजे से छूटने के लिये पूरा जोर लगाया, पर एक
हाथ से उसका मुख दाबे भौर दूसरे में उसकी देह थामे हथा धोरे घोरे उस
जंगल में बढ़ता गया । जंगल पार कर ग़रुवक उत्तर की प्रोर तट के सहारे बढ़
गया । यहाँ उसनें लड़की के मुख पर से हाथ हां लिया।
“कया तू मेरे साथ भायेगी ? ” उसने पूछा, “या सारे दिन में तुझे धर्तीद
कर ले जाता रहूं ?!
“में भ्रपनी इच्छा से तेरे साथ नहीं प्रारंगी,” मातुस ने उत्तर दिया।
“इससे काकू को या मेरे पिता को या मेरे भाई को तुमे मारने का हेक नहीं
रहेगा। पर क्योंकि भ्रव तू जबरदस्ती मुझे ले जा रहा है जैसा सालों ग्ुज्रे हमारे
बालों वाले पूर्वज ले जाते थे, वे तुझे मार डालेंगे। हंगा, ते एक पश्चु है भौर
तुझे एक पग्चु को तरह मार डालता चाहिये ।”
“इससे तेरी ही हानि म्धिक होगी,” हा मुस्कराया। “यदि तू राजी
में भेरे साथ नहीं गई तो हमारो जाति बच्चे को जान से मार डालेगी ।”
“हमारा कोई बच्चा नहीं होगा,” मातुल ग्रुर्राई भौर प्रपनी मृगछाल के
नोवे उसने पत्थर के चाकू का बेंट कस कर पड लिया ।
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