भारतीपुर | Bharatipur

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Bharatipur by यू० आर०अनन्तमूर्ति - U. R. ANANTMURTI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह भारतीपुर / 23 सबसे छिपा कर, झपने पति की भी नजरों की प्रोट में सुंघनी की आदत थी, जो हर कोई जानता था। हर माह एक डिबिया लाकर खुद रायसाहब ही ऐसी जगह रख देते, जहाँ से उनको पत्नी को प्रासानी से मिल जाये। जव रायसाहब जेल गये थे तब सूंघनी पहुंचाने की यह ग्रुप्त जिम्मेदारी जगन्नाथ ने हो सुंभाली थी। भ्रव लड़का बड़ा हो गया है भ्रौर सावित्नी भी मिडिल स्कूल मे काम करतो है, इसलिए रायसाहब को अव सुंघनी ला देने की ज़रूरत नही पडती 1 बारीक कटे हुए सफ़ेद बाल, घनी भौंहो के तीचे लड़कपन की शरारत- भरी आँखें, कानो में रोम-राशि, नाटा क़द, दुबला बदन, फ़ुर्ती से चलने- फिरने वाले व्यक्ति ये श्रीपतिराय। चाहे कुर्सी पर ही बयों न बैठे हों, उमंग झायी कि भट पाँव मोड़ कर पद्मासन में वैठ जायेंगे, या उठ कर चहल-केदमी करने लगेंगे। पर उन्हें घर पर चेन नही मिलता, सदा खोये- खोये रहते हैं । इसे जमननाथ जानता था, इसलिए कहा--चलिये राय- साहव, घलें।! “ज़रा ठहरो ! * उन्होंने कहा । दरवाज़ा खुला। रायसाहव की पत्नी भाग्यम्मा पीतल के दो गिलासों में चाम लाथी। रायसाहब के घर में श्रभी स्टेनलेस-स्टील के युग ने पदार्पंण नहीं किया था। किसी ज़माने के बेढेंगे मिलास | कालिख का संग्रह किये पिचके हुए किनारे, गिलास को गरम कर खुद ठंडो पड़ जाने वाची गुड की चाय । 'कुशल-मंगल तो है ?” चाय को चुस्की लेते हुए जगन्नाथ ने पूछा । 'ठोक है। दस-पन्द्रह दिनों से इधर दिखायी ही नही पड़े।' भाग्यम्मा ने प्रॉचल से प्रपनी भ्राँखें साफ करते हुए उदासी से कहा। भाग्यमम्मा दृहरे बदन की महिला थी, छोटा-सा ललाट, छोटी-छोटी आँखें । उनको मुसकरातै हुए किसी ने नही देखा था। जवानी की उमगे घुझ्माँ उग लते चूल्हे को फूकते-फूंकते, बच्चो को जन्म दे-देकर, कही उड गयी थी। पर श्रीपतिराय अभी भी इमली के पटसन की तरह कैसे ऐेंठे हुए हैं शीत-युद्ध घर में वर्षों स चलता होगा-इसी लिए बाहर निवलते ही रापमादँं कैसे भंकुराते हैं? यह सोचते हुए जगन्नाथ ने माग्यम्मा 7 11000




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