नेहरू जी का महाप्रस्थान | Neharu Ji Ka Mahaprasthan

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Neharu Ji Ka Mahaprasthan by रघुनाथ सिंह - Raghunath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विदयास बा एकमात्र रहस्य था । वे---सुर थे । असुर क्षरीर शा आत्मा मानते थे। सुर छरीर और आस्मा में भेद मानते थे। आर्यो म व्याप्त इस भौधिक मत-विभिन्‍नता के कारण दो वग बन गए। उसी तरह वन गए जैसे आज विश्य में साकहन्त्रीय तथा साम्यवादी गुट हैं हिन्दुस्तान के वश्ज जसे पागिस्तान और हिन्दुस्तान में ससकृति के नाम पर विभष्त हा गए । मसुर हा गए सामपणी । सुर वन गए दक्षिणपत्थी । अहुर प्षम्द हां गया अमुर का अपभ्रश । अदु रमज्द अर्थात्‌ महाअमुर हो गए पारसिमों क॑ मगबान । फिर भी उनका स्रास एम ही है । उतवा वहा था एक ही । ध--एकाकार हुए। आत्मा ते कामा को नमस्कार मिया। काया के रूप बए सवभा विथटिल बरसे थ छिए निया बन्तिम संस्कार निमित्त अग्नि भस मूमि सभा झाकादा चार साधना गए आश्रय छिया जाता रहा है। हिन्दू जापानी वोद् बग्निदाह करते हैं। महाणव में जहामा पर भूसका तथा भूमि पर सनन्‍्मासियों का जलप्रवाह किया जासा है। ईसाई सभा मुसमान भूमि में समाधि हेते हैं। भार्यो की ही सन्तान पारसी दाव को घाकाद के नीचे पक्षियों के खाने के लिए छाड देत हैं। उनके पाथिव सरीर शा क्न्सिम संस्कार इसी एकाकार का प्रसीक था। व--हिन्दुस्तान थे। उन्हांने चारों सस्कार्रो को स्पीकार फिया। अग्नि-सल्कार ड्रारा पुरासन वैदिक मर्यादा झा पालन किया । गगाजतस्त मे अम्धि प्रवाह कराइर सनन्‍्यासी-घर्म का पालन किया। आकाश मे भम्म उद्रर आकाए संस्गार का पाप्तन किया। भारत मूमि के रण कण में मिलकर भारत मूमिमय हाकर उन्होने मूमि-सस्कारों पा पालन बिया। बै--जनता ने थे। जनता उनकी थी । जनता में रहे । जनठा गो अदा के दीघ घसे | ब सस्प स््यामस मारसभूमि का अपती इयामलछ भस्म द्वारा शस्य-श्याम” मरने घसे । 'यौसावसो पुरुष सोहमस्मि--- श्र सि बक्य के संदर्भ में फहुँगा--ब यही थ्रे--जो व थ। आइए उनका मानसिफ दपण अपनी अजञ्र स्नेहघारा स बरें)




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